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Thursday 3 April 2014

६ से १२

भाग 7: प्रथम अनुसूची के भाग ख में राज्‍य भाग 7- [पहली अनुसूची के भाग ख के राज्य]. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा निरस्त भाग 8: 1[संघ राज्यक्षेत्र] 2[239. संघ राज्यक्षेत्रों का प्रशासन--(1) संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, प्रत्येक संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा, और वह अपने द्वारा ऐसे पदाभिधान सहित, जो वह विनिर्दिष्ट करे, नियुक्त किए गए प्रशासक के माध्यम से उस मात्रा तक कार्य करेगा जितनी वह ठीक समझता है। (2) भाग 6 में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल को किसी निकटवर्ती संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासक नियुक्त कर सकेगा और जहाँ कोई राज्यपाल इस प्रकार नियुक्त किया जाता है वहाँ वह ऐसे प्रशासक के रूप में अपने कृत्यों का प्रयोग अपनी मंत्रि-परिषद से स्वतंत्र रूप से करेगा। 3[239क. कुछ संघ राज्यक्षेत्रों के लिए स्थानीय विधान-मंडलों या मंत्रि-परिषदों का या दोनों का सृजन-- (1) संसद‌, विधि द्वारा 4[पांडिचेरी, संघ राज्यक्षेत्र के लिए],-- (क) उस संघ राज्यक्षेत्र के विधान-मंडल के रूप में कार्य करने के लिए निर्वाचित या भागतः नामनिर्देशित और भागतः निर्वाचित निकाय का, या (ख) मंत्रि-परिषद का, या दोनों का सृजन कर सकेगी, जिनमें से प्रत्येक का गठन, शक्तियाँ और कृत्य वे होंगे जो उस विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएँ। (2) खंड (1) में निर्दिष्ट विधि को, अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन इस बात के होते हुए भी नहीं समझा जाएगा कि उसमें कोई ऐसा उपबंध अंतर्विष्ट है जो इस संविधान का संशोधन करता है या संशोधन करने का प्रभाव रखता है। 5[239कक. दिल्ली के संबंध में विशेष उपबंध--(1) संविधान (उनहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1991 के प्रारंभ से दिल्ली संघ राज्यक्षेत्र को दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र (जिसे इस भाग में इसके पश्चात्‌ राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र कहा गया है) कहा जाएगा और अनुच्छेद 239 के अधीन नियुक्त उसके प्रशासक का पदाभिधान उप-राज्यपाल होगा। (2)(क) राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र के लिए एक विधान सभा होगी और ऐसी विधान सभा में स्थान राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए सदस्यों से भरे जाएँगे। (ख) विधान सभा में स्थानों की कुल संख्‍या, अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्‍या, राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन (जिसके अंतर्गत ऐसे विभाजन का आधार है) तथा विधान सभा के कार्यकरण से संबंधित सभी अन्य विषयों का विनियमन, संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा किया जाएगा। (ग) अनुच्छेद 324 से अनुच्छेद 327 और अनुच्छेद 329 के उपबंध राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र, राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र की विधान सभा और उसके सदस्यों के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे, किसी राज्य, किसी राज्य की विधान सभा और उसके सदस्यों के संबंध में लागू होते हैं तथा अनुच्छेद 326 और अनुच्छेद 329 में '' समुचित विधान-मंडल'' के प्रति निर्देश के बारे में यह समझा जाएगा कि वह संसद के प्रति निर्देश है। 1 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 17 द्वारा शीर्षक '' प्रथम अनुसूची के भाग ग में के राज्य'' के स्थान पर प्रतिस्थापित। 2 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 17 द्वारा अनुच्छेद 239 और अनुच्छेद 240 के स्थान पर प्रतिस्थापित। 3 संविधान (चौदहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1962 की धारा 4 द्वारा अंतःस्थापित। 4 गोवा, दमण और दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) '' गोवा, दमण और दीव, और पांडिचेरी संघ राज्यक्षेत्रों में से किसी के लिए'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। 5 संविधान (उनहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1991 की धारा 2 द्वारा (1-2-1992 से) अंतःस्थापित। (3)(क) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, विधान सभा को राज्य सूची की प्रविष्टि 1, प्रविष्टि 2 और प्रविष्टि 18 से तथा उस सूची की प्रविष्टि 64, प्रविष्टि 65 और प्रविष्टि 66 से, जहाँ तक उनका संबंध उक्त प्रविष्टि 1, प्रविष्टि 2 और प्रविष्टि 18 से है, संबंधित विषयों से भिन्न राज्य सूची में या समवर्ती सूची में प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में, जहाँ तक ऐसा कोई विषय संघ राज्यक्षेत्रों को लागू है, संपूर्ण राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाने की शक्ति होगी। (ख) उपखंड (क) की किसी बात से संघ राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए किसी भी विषय के संबंध में इस संविधान के अधीन विधि बनाने की संसद की शक्ति का अल्पीकरण नहीं होगा। (ग) यदि विधान सभा द्वारा किसी विषय के संबंध में बनाई गई विधि का कोई उपबंध संसद द्वारा उस विषय के संबंध में बनाई गई विधि के, चाहे वह विधान सभा द्वारा बनाई गई विधि से पहले या उसके बाद में पारित की गई हो, या किसी पूर्वतर विधि के, जो विधान सभा द्वारा बनाई गई विधि से भिन्न है, किसी उपबंध के विरुद्ध है तो, दोनों दशाओं में, यथास्थिति, संसद द्वारा बनाई गई विधि, या ऐसी पूर्वतर विधि अभिभावी होगी और विधान सभा द्वारा बनाई गई विधि उस विरोध की मात्रा तक शून्य होगी : परंतु यदि विधान सभा द्वारा बनाई गई किसी ऐसी विधि को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखा गया है और उस पर उसकी अनुमति मिल गई है तो ऐसी विधि राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र में अभिभावी होगी : परंतु यह और कि इस उपखंड की कोई बात संसद को उसी विषय के संबंध में कोई विधि, जिसके अंतर्गत ऐसी विधि है जो विधान सभा द्वारा इस प्रकार बनाई गई विधि का परिवर्धन, संशोधन, परिवर्तन या निरसन करती है, किसी भी समय अधिनियमित करने से निवारित नहीं करेगी। (4) जिन बातों में किसी विधि द्वारा या उसके अधीन उप-राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने विवेकानुसार कार्य करे उन बातों को छोड़कर, उप-राज्यपाल की, उन विषयों के संबंध में, जिनकी बाबत विधान सभा को विधि बनाने की शक्ति है, अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रि-परिषद होगी जो विधान सभा की कुल सदस्य संख्‍या के दस प्रतिशत से अधिक सदस्यों से मिलकर बनेगी, जिसका प्रधान, मुख्यमंत्री होगा: परंतु उप-राज्यपाल और उसके मंत्रियों के बीच किसी विषय पर मतभेद की दशा में, उप-राज्यपाल उसे राष्ट्रपति को विनिश्चय के लिए निर्देशित करेगा और राष्ट्रपति द्वारा उस पर किए गए विनिश्चय के अनुसार कार्य करेगा तथा ऐसा विनिश्चय होने तक उप-राज्यपाल किसी ऐसे मामले में, जहाँ वह विषय, उसकी राय में, इतना आवश्यक है जिसके कारण तुरंत कार्रवाई करना उसके लिए आवश्यक है वहां, उस विषय में ऐसी कार्रवाई करने या ऐसा निदेश देने के लिए, जो वह आवश्यक समझे, सक्षम होगा। (5) मुख्यमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति , मुख्यमंत्री की सलाह पर करेगा तथा मंत्री, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपने पद धारण करेंगे। (6) मंत्रि-परिषद विधान सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी। (7)(क) संसद पूर्वगामी खंडों को प्रभावी करने के लिए, या उनमें अंतर्विष्ट उपबंधों की अनुपूर्ति के लिए और उनके आनुषंगिक या पारिणामिक सभी विषयों के लिए, विधि द्वारा, उपबंध कर सकेगी; (ख) उपखंड (क) में निर्दिष्ट विधि को, अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन इस बात के होते हुए भी नहीं समझा जाएगा कि उसमें कोई ऐसा उपबंध अंतर्विष्ट है जो इस संविधान का संशोधन करता है या संशोधन करने का प्रभाव रखता है। 1 संविधान (सत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1992 की धारा 3 द्वारा (21-12-1991 से) '' (7)'' के स्थान पर प्रतिस्थापित। 2 संविधान (सत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1992 की धारा 3 द्वारा (21-12-1991 से) अंतःस्थापित। (8) अनुच्छेद 239ख के उपबंध, जहाँ तक हो सके, राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र, उप-राज्यपाल और विधान सभा के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे पांडिचेरी संघ राज्यक्षेत्र, प्रशासक और उसके विधान-मंडल के संबंध में लागू होते हैं; और उस अनुच्छेद में '' अनुच्छेद 239क के खंड (1)'' के प्रति निर्देश के बारे में यह समझा जाएगा कि वह, यथास्थिति, इस अनुच्छेद या अनुच्छेद 239कख के प्रति निर्देश है। 239कख. सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध--यदि राष्ट्रपति का, उप-राज्यपाल से प्रतिवेदन मिलने पर या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है कि,-- (क) ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र का प्रशासन अनुच्छेद 239कक या या उस अनुच्छेद के अनुसरण में बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है; या (ख) राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र के उचित प्रशासन के लिए ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है, तो राष्ट्रपति , आदेश द्वारा, अनुच्छेद 239कक के किसी उपबंध के अथवा उस अनुच्छेद के अनुसरण में बनाई गई किसी विधि के सभी या किन्हीं उपबंधों के प्रवर्तन को, ऐसी अवधि के लिए और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट की जाएँ, निलंबित कर सकेगा, तथा ऐसे आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध कर सकेगा जो अनुच्छेद 239 और अनुच्छेद 239कक के उपबंधों के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र के प्रशासन के लिए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों। 239ख. विधान-मंडल के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की प्रशासक की शक्ति--(1) उस समय को छोड़कर जब पांडिचेरी संघ राज्यक्षेत्र का विधान-मंडल सत्र में है, यदि किसी समय उसके प्रशासक का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जिनके कारण तुरंत कार्रवाई करना उसके लिए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा जो उसे उन परिस्थितियों में अपेक्षित प्रतीत हों: परंतु प्रशासक, कोई ऐसा अध्यादेश राष्ट्रपति से इस निमित्त अनुदेश अभिप्राप्त करने के पश्चात्‌ ही प्रख्यापित करेगा, अन्यथा नहीं : परंतु यह और कि जब कभी उक्त विधान-मंडल का विघटन कर दिया जाता है या अनुच्छेद 239क के खंड (1) में निर्दिष्ट विधि के अधीन की गई किसी कार्रवाई के कारण उसका कार्यकरण निलंबित रहता है तब प्रशासक ऐसे विघटन या निलंबन की अवधि के दौरान कोई अध्यादेश प्रख्यापित नहीं करेगा। (2) राष्ट्रपति के अनुदेशों के अनुसरण में इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित अध्यादेश संघ राज्यक्षेत्र के विधान-मंडल का ऐसा अधिनियम समझा जाएगा जो अनुच्छेद 239क के खंड (1) में निर्दिष्ट विधि में, उस निमित्त अंतर्विष्ट उपबंधों का अनुपालन करने के पश्चात्‌ सम्यक्‌ रूप से अधिनियमित किया गया है, किंतु प्रत्येक ऐसा अध्यादेश-- (क) संघ राज्यक्षेत्र के विधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा और विधान-मंडल के पुनः समवेत होने से छह सप्ताह की समाप्ति पर या यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले विधान-मंडल उसके अननुमोदन का संकल्प पारित कर देता है तो संकल्प के पारित होने पर प्रवर्तन में नहीं रहेगा; और (ख) राष्ट्रपति से इस निमित्त अनुदेश ओंभप्राप्त करने के पश्चात्‌ प्रशासक द्वारा किसी भी समय वापस लिया जा सकेगा। (3) यदि और जहाँ तक इस अनुच्छेद के अधीन अध्यादेश कोई ऐसा उपबंध करता है जो संघ राज्यक्षेत्र के विधान-मंडल के ऐसे अधिनियम में, जिसे अनुच्छेद 239क के खंड (1) में निर्दिष्ट विधि में इस निमित्त अंतर्विष्ट उपबंधों का अनुपालन करने के पश्चात्‌ बनाया गया है, अधिनियमित किए जाने पर विधिमान्य नहीं होता तो और वहाँ तक वह अध्यादेश शून्य होगा। 1 संविधान (सत्ताईसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा (30-12-1971 से) अंतःस्थापित। 2 गोवा, दमण और दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) '' अनुच्छेद 239क के खंड (1) में निर्दिष्ट संघ राज्यक्षेत्रों'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। 240. कुछ संघ राज्यक्षेत्रों के लिए विनियम बनाने की राष्ट्रपति की शक्ति--(1) राष्ट्रपति -- (क) अंडमान और निकोबार द्वीप; (ख) लक्षद्वीप; (ग) दादरा और नागर हवेली; (घ) दमण और दीव; (ङ) पांडिचेरी; 6 * * * * 7 * * * * संघ राज्यक्षेत्र की शांति, प्रगति और सुशासन के लिए विनियम बना सकेगा : 8[परंतु जब 9[10[पांडिचेरी संघ राज्यक्षेत्र]] के लिए विधान-मंडल के रूप में कार्य करने के लिए अनुच्छेद 239क के अधीन किसी निकाय का सृजन किया जाता है तब राष्ट्रपति विधान-मंडल के प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से उस संघ राज्यक्षेत्र की शांति, प्रगति और सुशासन के लिए विनियम नहीं बनाएगा: 1परंतु यह और कि जब कभी पांडिचेरी संघ राज्यक्षेत्र के विधान-मंडल के रूप में कार्य करने वाले निकाय का विघटन कर दिया जाता है या उस निकाय का ऐसे विधान-मंडल के रूप में कार्यकरण, अनुच्छेद 239क के खंड (1) में निर्दिष्ट विधि के अधीन की गई कार्रवाई के कारण निलंबित रहता है तब राष्ट्रपति ऐसे विघटन या निलंबन की अवधि के दौरान उस संघ राज्यक्षेत्र की शांति, प्रगति और सुशासन के लिए विनियम बना सकेगा। (2) इस प्रकार बनाया गया कोई विनियम संसद द्वारा बनाए गए किसी अधिनियम या 1किसी अन्य विधि का, जो उस संघ राज्यक्षेत्र को तत्समय लागू है, निरसन या संशोधन कर सकेगा और राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित किए जाने पर उसका वही बल और प्रभाव होगा जो संसद के किसी ऐसे अधिनियम का है जो उस राज्यक्षेत्र को लागू होता है। 1 संविधान (अड़तीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (4) अंतःस्थापित किया गया और उसका संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 32 द्वारा (20-6-1979 से) लोप किया गया। 2 लक्कादीव, मिनिकोय और अमीनदावी द्वीप (नाम परिवर्तन) अधिनियम, 1973 (1973 का 34) की धारा 4 द्वारा (1-11-1973 से) प्रविष्टि (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित। 3 संविधान (दसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1961 की धारा 3 द्वारा अंतःस्थापित। 4 गोवा, दमण और दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा प्रविष्टि (घ) के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बारहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1962 की धारा 3 द्वारा प्रविष्टि (घ) अंतःस्थापित की गई थी। 5 संविधान (चौदहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1962 की धारा 5 और धारा 7 द्वारा (16-8-1962 से) अंतःस्थापित। 6 मिजोरम राज्य अधिनियम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) मिजोरम संबंधी प्रविष्टि (च) का लोप किया गया। 7 अरुणाचल प्रदेश अधिनियम, 1986 (1986 का 69) की धारा 42 द्वारा (20-2-1987 से) अरुणाचल प्रदेश संबंधी प्रविष्टि (छ) का लोप किया गया। 8 संविधान (चौदहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1962 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित। 9 गोवा, दमण और दीव पुनर्गठन अधिनियम, 1987 (1987 का 18) की धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) '' गोवा, दमण और दीव या पांडिचेरी'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। 10 संविधान (सत्ताईसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) '' गोवा, दमण और दीव या पांडिचेरी संघ राज्यक्षेत्र'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। 11 संविधान (सत्ताईसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) अंतःस्थापित। 12 संविधान (सत्ताईसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) '' किसी विद्यमान विधि'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। 241. संघ राज्यक्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय--(1) संसद विधि द्वारा, किसी संघ राज्यक्षेत्र के लिए उच्च न्यायालय गठित कर सकेगी या ऐसे संघ राज्यक्षेत्र में किसी न्यायालय को इस संविधान के सभी या किन्हीं प्रयोजनों के लिए उच्च न्यायालय घोषित कर सकेगी। (2) भाग 6 के अध्याय 5 के उपबंध, ऐसे उपांतरणों या अपवादों के अधीन रहते हुए, जो संसद विधि द्वारा उपबंधित करे, खंड (1) में निर्दिष्ट प्रत्येक उच्च न्यायालय के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे अनुच्छेद 214 में निर्दिष्ट किसी उच्च न्यायालय के संबंध में लागू होते हैं। (3) इस संविधान के उपबंधों के और इस संविधान द्वारा या इसके अधीन समुचित विधान-मंडल को प्रदत्त शक्तियों के आधार पर बनाई गई उस विधान-मंडल की किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक उच्च न्यायालय, जो संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 के प्रारंभ से ठीक पहले किसी संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग करता था, ऐसे प्रारंभ के पश्चात्‌ उस राज्यक्षेत्र के संबंध में उस अधिकारिता का प्रयोग करता रहेगा। (4) इस अनुच्छेद की किसी बात से किसी राज्य के उच्च न्यायालय की अधिकारिता का किसी संघ राज्यक्षेत्र या उसके भाग पर विस्तार करने या उससे अपवर्जन करने की संसद की शक्ति का अल्पीकरण नहीं होगा। 242. कोड़गू। संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा निरसित। 1[भाग 9] पंचायतें 243. परिभाषाएँ-- इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-- (क) ''जिला'' से किसी राज्य का जिला अभिप्रेत है; (ख) ''ग्राम सभा'' से ग्राम स्तर पर पंचायत के क्षेत्र के भीतर समाविष्ट किसी ग्राम से संबंधित निर्वाचक नामावली में रजिस्ट्रीकृत व्यक्तियों से मिलकर बना निकाय अभिप्रेत है; (ग) ''मध्यवर्ती स्तर'' से ग्राम और जिला स्तरों के बीच का ऐसा स्तर अभिप्रेत है जिसे किसी राज्य का राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजनों के लिए, लोक अधिसूचना द्वारा, मध्यवर्ती स्तर के रूप में विनिर्दिष्ट करे (घ) ''पंचायत'' से ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अनुच्छेद 243ख के अधीन गठित स्वायत्त शासन की कोई संस्था (चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो) अभिप्रेत है; (ङ) ''पंचायत क्षेत्र'' से पंचायत का प्रादेशिक क्षेत्र अभिप्रेत है; (च) ''जनसंख्या '' से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आँकड़े प्रकाशित हो गए हैं; (छ) ''ग्राम'' से राज्यपाल द्वारा इस भाग के प्रयोजनों के लिए, लोक अधिसूचना द्वारा, ग्राम के रूप में विनिर्दिष्ट ग्राम अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत इस प्रकार विनिर्दिष्ट ग्रामों का समूह भी है। 243क. ग्राम सभा--ग्राम सभा, ग्राम स्तर पर ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कृत्यों का पालन कर सकेगी, जो किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा, विधि द्वारा, उपबंधित किए जाएँ। 243ख. पंचायतों का गठन--(1) प्रत्येक राज्य में ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तर पर इस भाग के उपबंधों के अनुसार पंचायतों का गठन किया जाएगा। (2) खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत का उस राज्य में गठन नहीं किया जा सकेगा जिसकी जनसंख्या बीस लाख से अधिक है। 243ग. पंचायतों की संरचना--(1) इस भाग के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, पंचायतों की संरचना की बाबत उपबंध कर सकेगा : परंतु किसी भी स्तर पर पंचायत के प्रादेशिक क्षेत्र की जनसंख्या का ऐसी पंचायत में निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की संख्‍या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो। (2) किसी पंचायत के सभी स्थान, पंचायत क्षेत्र में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए व्यक्तियों से भरे जाएँगे और इस प्रयोजन के लिए, प्रत्येक पंचायत क्षेत्र को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्‍या से अनुपात समस्त पंचायत क्षेत्र में यथासाध्य एक ही हो। (3) किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा,-- (क) ग्राम स्तर पर पंचायतों के अध्यक्षों का मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों में या ऐसे राज्य की दशा में, जहाँ मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतें नहीं हैं, जिला स्तर पर पंचायतों में; (ख) मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों के अध्यक्षों का जिला स्तर पर पंचायतों में; 1 संविधान (तिहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1992 की धारा 2 द्वारा (24-1-1993 से) अंतःस्थापित। संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा मूल भाग 9 का लोप किया गया था। (ग) लोकसभा के ऐसे सदस्यों का और राज्य की विधान सभा के ऐसे सदस्यों का, जो उन निर्वाचन-क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें ग्राम स्तर से भिन्न स्तर पर कोई पंचायत क्षेत्र पूर्णतः या भागतः समाविष्ट है, ऐसी पंचायत में; (घ) राज्य सभा के सदस्यों का और राज्य की विधान परिषद्‍ के सदस्यों का, जहाँ वे,-- (i) मध्यवर्ती स्तर पर किसी पंचायत क्षेत्र के भीतर निर्वाचकों के रूप में रजिस्ट्रीकृत है, मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत में; (ii) जिला स्तर पर किसी पंचायत क्षेत्र के भीतर निर्वाचकों के रूप में रजिस्ट्रीकृत हैं, जिला स्तर पर पंचायत में, प्रतिनिधित्व करने के लिए उपबंध कर सकेगा। (4) किसी पंचायत के अध्यक्ष और किसी पंचायत के ऐसे अन्य सदस्यों को, चाहे वे पंचायत क्षेत्र में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए हों या नहीं, पंचायतों के अधिवेशनों में मत देने का अधिकार होगा। (5)(क) ग्राम स्तर पर किसी पंचायत के अध्यक्ष का निर्वाचन ऐसी रीति से, जो राज्य के विधान-मंडल द्वारा, विधि द्वारा, उपबंधित की जाए, किया जाएगा; और (ख) मध्यवर्ती स्तर या जिला स्तर पर किसी पंचायत के अध्यक्ष का निर्वाचन, उसके निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से किया जाएगा। 243घ. स्थानों का आरक्षण--(1) प्रत्येक पंचायत में-- (क) अनुसूचित जातियों; और (ख) अनुसूचित जनजातियों, के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे और इस प्रकार आरक्षित स्थानों की संख्‍या का अनुपात, उस पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्‍या से यथाशक्य वही होगा जो उस पंचायत क्षेत्र में अनुसूचित जातियों की अथवा उस पंचायत क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या का अनुपात उस क्षेत्र की कुल जनसंख्या से है और ऐसे स्थान किसी पंचायत में भिन्न-भिन्न निर्वाचन क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आबंटित किए जा सकेंगे। (2) खंड (1) के अधीन आरक्षित स्थानों की कुल संख्‍या के कम से कम एक-तिहाई स्थान, यथास्थिति, अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे। (3) प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्‍या के कम से कम एक-तिहाई स्थान (जिनके अंतर्गत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की स्त्रियों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्‍या भी है) स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे और ऐसे स्थान किसी पंचायत में भिन्न-भिन्न निर्वाचन-क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आबंटित किए जा सकेंगे। (4) ग्राम या किसी अन्य स्तर पर पंचायतों में अध्यक्षों के पद अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और स्त्रियों के लिए ऐसी रीति से आरक्षित रहेंगे, जो राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, उपबंधित करे: परंतु किसी राज्य में प्रत्येक स्तर पर पंचायतों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित अध्यक्षों के पदों की संख्‍या का अनुपात, प्रत्येक स्तर पर उन पंचायतों में ऐसे पदों की कुल संख्‍या से यथाशक्य वही होगा, जो उस राज्य में अनुसूचित जातियों की अथवा उस राज्य में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या का अनुपात उस राज्य की कुल जनसंख्या से है : परंतु यह और कि प्रत्येक स्तर पर पंचायतों में अध्यक्षों के पदों की कुल संख्‍या के कम से कम एक-तिहाई पद स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे : परंतु यह भी कि इस खंड के अधीन आरक्षित पदों की संख्‍या प्रत्येक स्तर पर भिन्न-भिन्न पंचायतों को चक्रानुक्रम से आबंटित की जाएगी। (5) खंड (1) और खंड (2) के अधीन स्थानों का आरक्षण और खंड (4) के अधीन अध्यक्षों के पदों का आरक्षण (जो स्त्रियों के लिए आरक्षण से भिन्न है) अनुच्छेद 334 में विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति पर प्रभावी नहीं रहेगा। (6) इस भाग की कोई बात किसी राज्य के विधान-मंडल को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में किसी स्तर पर किसी पंचायत में स्थानों के या पंचायतों में अध्यक्षों के पदों के आरक्षण के लिए कोई उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी। 243ङ. पंचायतों की अवधि, आदि--(1) प्रत्येक पंचायत, यदि तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से पाँच वर्ष तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं। (2) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के किसी संशोधन से किसी स्तर पर ऐसी पंचायत का, जो ऐसे संशोधन के ठीक पूर्व कार्य कर रही है, तब तक विघटन नहीं होगा जब तक खंड (1) में विनिर्दिष्ट उसकी अवधि समाप्त नहीं हो जाती। (3) किसी पंचायत का गठन करने के लिए निर्वाचन,-- (क) खंड (1) में विनिर्दिष्ट उसकी अवधि की समाप्ति के पूर्व; (ख) उसके विघटन की तारीख से छह मास की अवधि की समाप्ति के पूर्व, पूरा किया जाएगा: परंतु जहाँ वह शेष अवधि, जिसके लिए कोई विघटित पंचायत बनी रहती, छह मास से कम है वहां ऐसी अवधि के लिए उस पंचायत का गठन करने के लिए इस खंड के अधीन कोई निर्वाचन कराना आवश्यक नहीं होगा। (4) किसी पंचायत की अवधि की समाप्ति के पूर्व उस पंचायत के विघटन पर गठित की गई कोई पंचायत, उस अवधि के केवल शेष भाग के लिए बनी रहेगी जिसके लिए विघटित पंचायत खंड (1) के अधीन बनी रहती, यदि वह इस प्रकार विघटित नहीं की जाती। 243च. सदस्यता के लिए निरर्हताएँ--(1) कोई व्यक्ति किसी पंचायत का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा, -- (क) यदि वह संबंधित राज्य के विधान-मंडल के निर्वाचनों के प्रयोजनों के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया जाता है: परंतु कोई व्यक्ति इस आधार पर निरर्हित नहीं होगा कि उसकी आयु पच्चीस वर्ष से कम है, यदि उसने इक्कीस वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है; (ख) यदि वह राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया जाता है। (2) यदि यह प्रश्न उठता है कि किसी पंचायत का कोई सदस्य खंड (1) में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न ऐसे प्राधिकारी को, और ऐसी रीति से, जो राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, उपबंधित करे, विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा। 243छ. पंचायतों की शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तरदायित्व--संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, पंचायतों को ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान कर सकेगा, जो उन्हें स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हों और ऐसी विधि में पंचायतों को उपयुक्त स्तर पर, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाएँ, निम्नलिखित के संबंध में शक्तियाँ और उत्तरदायित्व न्यागत करने के लिए उपबंध किए जा सकेंगे, अर्थात्‌ :-- (क) आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएँ तैयार करना; (ख) आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की ऐसी स्कीमों को, जो उन्हें सौंपी जाएँ, जिनके अंतर्गत वे स्कीमें भी हैं, जो ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध विषयों के संबंध में हैं, कार्यान्वित करना। 243ज. पंचायतों द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्तियाँ और उनकी निधियाँ--किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा,-- (क) ऐसे कर, शुल्क, पथ कर और फीसें उद्‌गृहीत, संगृहीत और विनियोजित करने के लिए किसी पंचायत को, ऐसी प्रक्रिया के अनुसार और ऐसे निर्बंधनों के अधीन रहते हुए, प्राधिकृत कर सकेगा; (ख) राज्य सरकार द्वारा उद्‌गृहीत और संगृहीत ऐसे कर, शुल्क, पथ कर और फीसें किसी पंचायत को, ऐसे प्रयोजनों के लिए, तथा ऐसी शर्तों और निर्बंधनों के अधीन रहते हुए, समनुदिष्ट कर सकेगा; (ग) राज्य की संचित निधि में से पंचायतों के लिए ऐसे सहायता-अनुदान देने के लिए उपबंध कर सकेगा; और (घ) पंचायतों द्वारा या उनकी ओर से क्रमशः प्राप्त किए गए सभी धनों को जमा करने के लिए ऐसी निधियों का गठन करने और उन निधियों में से ऐसे धनों को निकालने के लिए भी उपबंध कर सकेगा, जो विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएँ। 243झ. वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन--(1) राज्य का राज्यपाल, संविधान (तिहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1992 के प्रारंभ से एक वर्ष के भीतर यथाशीघ्र, और तत्पश्चात्‌, प्रत्येक पाँचवें वर्ष की समाप्ति पर, वित्त आयोग का गठन करेगा जो पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पुनर्विलोकन करेगा, और जो-- (क)(i) राज्य द्वारा उद्‌गृहीत करों, शुल्कों, पथ करों और फीसों के ऐसे शुद्ध आगमों के राज्य और पंचायतों के बीच, जो इस भाग के अधीन उनमें विभाजित किए जाएँ, वितरण को और सभी स्तरों पर पंचायतों के बीच ऐसे आगमों के तत्संबंधी भाग के आबंटन को; (ii) ऐसे करों, शुल्कों, पथ करों और फीसों के अवधारण को, जो पंचायतों को समनुदिष्ट की जा सकेंगी या उनके द्वारा विनियोजित की जा सकेंगी; (iii) राज्य की संचित निधि में से पंचायतों के लिए सहायता अनुदान को, शासित करने वाले सिद्धांतों के बारे में; (ख) पंचायतों की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए आवश्यक अध्युपायों के बारे में; (ग) पंचायतों के सुदृढ़ वित्त के हित में राज्यपाल द्वारा वित्त आयोग को निर्दिष्ट किए गए किसी अन्य विषय के बारे में, राज्यपाल को सिफारिश करेगा। (2) राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, आयोग की संरचना का, उन अर्हताओं का, जो आयोग के सदस्यों के रूप में नियुक्ति के लिए अपेक्षित होंगी, और उस रीति का, जिससे उनका चयन किया जाएगा, उपबंध कर सकेगा। (3) आयोग अपनी प्रक्रिया अवधारित करेगा और उसे अपने कृत्यों के पालन में ऐसी शक्तियाँ होंगी जो राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, उसे प्रदान करे (4) राज्यपाल इस अनुच्छेद के अधीन आयोग द्वारा की गई प्रत्येक सिफारिश को, उस पर की गई कार्रवाई के स्पष्टीकारक ज्ञापन सहित, राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा। 243ञ. पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा--किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, पंचायतों द्वारा लेखे रखे जाने और ऐसे लेखाओं की संपरीक्षा करने के बारे में उपबंध कर सकेगा। 243ट. पंचायतों के लिए निर्वाचन--(1) पंचायतों के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने का और उन सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण एक राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा, जिसमें एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होगा, जो राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा। (2) किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्ते और पदावधि ऐसी होंगी जो राज्यपाल नियम द्वारा अवधारित करे: परंतु राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर ही हटाया जाएगा, जिस रीति से और जिन आधारों पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है, अन्यथा नहीं और राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा। (3) जब राज्य निर्वाचन आयोग ऐसा अनुरोध करे तब किसी राज्य का राज्यपाल, राज्य निर्वाचन आयोग को उतने कर्मचारिवृंद उपलब्ध कराएगा जितने खंड (1) द्वारा राज्य निर्वाचन आयोग को उसे सौंपे गए कृत्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक हों। (4) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, पंचायतों के निर्वाचनों से संबंधित या संसक्त सभी विषयों के संबंध में उपबंध कर सकेगा। 243ठ. संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होना--इस भाग के उपबंध संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होंगे और किसी संघ राज्यक्षेत्र को उनके लागू होने में इस प्रकार प्रभावी होंगे मानो किसी राज्य के राज्यपाल के प्रति निर्देश, अनुच्छेद 239 के अधीन नियुक्त संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक के प्रति निर्देश हों और किसी राज्य के विधान-मंडल या विधान सभा के प्रति निर्देश, किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में, जिसमें विधान सभा है, उस विधान सभा के प्रति निर्देश हों: परंतु राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा, यह निदेश दे सकेगा कि इस भाग के उपबंध किसी संघ राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग को ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, लागू होंगे, जो वह अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे। 243ड. इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना--(1) इस भाग की कोई बात अनुच्छेद 244 के खंड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और उसके खंड (2) में निर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों को लागू नहीं होगी। (2) इस भाग की कोई बात निम्नलिखित को लागू नहीं होगी, अर्थात्‌:-- (क) नागालैंड, मेघालय और मिजोरम राज्य; (ख) मणिपुर राज्य में ऐसे पर्वतीय क्षेत्र जिनके लिए तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन जिला परिषदें विद्यमान हैं। (3) इस भाग की-- (क) कोई बात जिला स्तर पर पंचायतों के संबंध में पश्चिमी बंगाल राज्य के दार्जिलिंग जिले के ऐसे पर्वतीय क्षेत्रों को लागू नहीं होगी जिनके लिए तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद् विद्यमान है; (ख) किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह ऐसी विधि के अधीन गठित दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद्‍ ‌ के कृत्यों और शक्तियों पर प्रभाव डालती है। 1[(3क) अनुसूचित जातियों के लिए स्थानों के आरक्षण से संबंधित अनुच्छेद 243घ की कोई बात अरुणाचल प्रदेश राज्य को लागू नहीं होगी। (4) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,-- (क) खंड (2) के उपखंड (क) में निर्दिष्ट किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, इस भाग का विस्तार, खंड (1) में निर्दिष्ट क्षेत्रों के सिवाय, यदि कोई हों, उस राज्य पर उस दशा में कर सकेगा जब उस राज्य की विधान सभा इस आशय का एक संकल्प उस सदन की कुल सदस्य संख्‍या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर देती है; (ख) संसद‌, विधि द्वारा, इस भाग के उपबंधों का विस्तार, खंड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों पर, ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, कर सकेगी, जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएँ और ऐसी किसी विधि को अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझा जाएगा। 243ढ. विद्यमान विधियों और पंचायतों का बना रहना--इस भाग में किसी बात के होते हुए भी, संविधान (तिहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1992 के प्रारंभ के ठीक पूर्व किसी राज्य में प्रवृत्त पंचायतों से संबंधित किसी विधि का कोई उपबंध, जो इस भाग के उपबंधों से असंगत है, जब तक सक्षम विधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसे संशोधित या निरसित नहीं कर दिया जाता है या जब तक ऐसे प्रारंभ से एक वर्ष समाप्त नहीं हो जाता है, इनमें से जो भी पहले हो, तब तक प्रवृत्त बना रहेगा: परंतु ऐसे प्रारंभ के ठीक पूर्व विद्यमान सभी पंचायतें, यदि उस राज्य की विधान सभा द्वारा या ऐसे राज्य की दशा में, जिसमें विधान परिषद्‍ ‌ है, उस राज्य के विधान-मंडल के प्रत्येक सदन द्वारा पारित इस आशय के संकल्प द्वारा पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती हैं तो, अपनी अवधि की समाप्ति तक बनी रहेंगी। 243ण. निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन--इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,-- (क) अनुच्छेद 243ट के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के लिए तात्पर्यित किसी ऐसी विधि की विधिमान्यता, जो निर्वाचन-क्षेत्रों के परिसीमन या ऐसे निर्वाचन-क्षेत्रों को स्थानों के आबंटन से संबंधित है, किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं की जाएगी; (ख) किसी पंचायत के लिए कोई निर्वाचन, ऐसी निर्वाचन अर्जी पर ही प्रश्नगत किया जाएगा जो ऐसे प्राधिकारी को और ऐसी रीति से प्रस्तुत की गई है, जिसका किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन उपबंध किया जाए, अन्यथा नहीं। 1 संविधान (तिरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित 1[भाग 9क नगरपालिकाएँ 243त. परिभाषाएँ--इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-- (क) ''समिति'' से अनुच्छेद 243ध के अधीन गठित समिति अभिप्रेत है ; (ख) ''जिला'' से किसी राज्य का जिला अभिप्रेत है ; (ग) ''महानगर क्षेत्र'' से दस लाख या उससे अधिक जनसंख्‍या वाला ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जिसमें एक या धिक जिले समाविष्ट हैं और जो दो या अधिक नगरपालिकाओं या पंचायतों या अन्य संलग्न क्षेत्रों से मिलकर बनता है तथा जिसे राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजनों के लिए, लोक अधिसूचना द्वारा, महानगर क्षेत्र के रूप में विनिर्दिष्ट करे ; (घ) '' नगरपालिका क्षेत्र'' से राज्यपाल द्वारा अधिसूचित किसी नगरपालिका का प्रादेशिक क्षेत्र अभिप्रेत है ; (ङ) ''नगरपालिका'' से अनुच्छेद 243थ के अधीन गठित स्वायत्त शासन की कोई संस्था अभिप्रेत है ; (च) ''पंचायत'' से अनुच्छेद 243ख के अधीन गठित कोई पंचायत अभिप्रेत है ; (छ) ''जनसंख्‍या'' से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्‍या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आँकड़े प्रकाशित हो गए हैं। 243थ. नगरपालिकाओं का गठन--(1) प्रत्येक राज्य में, इस भाग के उपबंधों के अनुसार,-- (क) किसी संक्रमणशील क्षेत्र के लिए, अर्थात्‌‌, ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र में संक्रमणगत क्षेत्र के लिए कोई नगर पंचायत का (चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो) ; (ख) किसी घुतर नगरीय क्षेत्र के लिए नगरपालिका परिषद् का ; और (ग) किसी वृहत्तर नगरीय क्षेत्र के लिए नगर निगम का, गठन किया जाएगा : परंतु इस खंड के अधीन कोई नगरपालिका ऐसे नगरीय क्षेत्र या उसके किसी भाग में गठित नहीं की जा सकेगी जिसे राज्यपाल, क्षेत्र के आकार और उस क्षेत्र में किसी औद्योगिक स्थापन द्वारा दी जा रही या दिए जाने के लिए प्रस्तावित नगरपालिक सेवाओं और ऐसी अन्य बातों को, जो वह ठीक समझे, ध्‍यान में रखते हुए, लोक अधिसूचना द्वारा, औद्योगिक नगरी के रूप में विनिर्दिष्ट करे। (2) इस अनुच्छेद में, ''संक्रमणशील क्षेत्र'', ''लघुतर नगरीय क्षेत्र'' या ''वृहत्तर नगरीय क्षेत्र'' से ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जिसे राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजनों के लिए, उस क्षेत्र की जनसंख्‍या, उसमें जनसंख्‍या की सघनता, स्थानीय प्रशासन के लिए उत्पन्न राजस्व, कृषि से भिन्न क्रियाकलापों में नियोजन की प्रतिशतता, आर्थिक महत्व या ऐसी अन्य बातों को, जो वह ठीक समझे, पयान में रखते हुए, लोक अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे। 243द. नगरपालिकाओं की संरचना--(1) खंड (2) में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, किसी नगरपालिका के सभी स्थान, नगरपालिका क्षेत्र में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए व्यक्तियों द्वारा भरे जाएँगे और इस प्रयोजन के लिए, प्रत्येक नगरपालिका क्षेत्र को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित किया जाएगा जो वार्ड के नाम से ज्ञात होंगे। (2) किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, -- 1 संविधान (चौहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1992 की धारा 2 द्वारा (1-6-1993 से) अंतःस्थापित। (क) नगरपालिका में,-- (i) नगरपालिका प्रशासन का विशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले व्यक्तियों का; (ii) लोकसभा के ऐसे सदस्यों का और राज्य की विधान सभा के ऐसे सदस्यों का, जो उन निर्वाचन-क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें कोई नगरपालिका क्षेत्र पूर्णतः या भागतः समाविष्ट हैं; (iii) राज्य सभा के ऐसे सदस्यों का और राज्य की विधान परिषद्‍ ‌ के ऐसे सदस्यों का, जो नगरपालिका क्षेत्र के भीतर निर्वाचकों के रूप में रजिस्ट्रीकृत हैं; (iv) अनुच्छेद 243ध के खंड (5) के अधीन गठित समितियों के अध्यक्षों का, प्रतिनिधित्व करने के लिए उपबंध कर सकेगा : परंतु पैरा (त्) में निर्दिष्ट व्यक्तियों को नगरपालिका के अधिवेशनों में मत देने का अधिकार नहीं होगा ; (ख) किसी नगरपालिका के अध्यक्ष के निर्वाचन की रीति का उपबंध कर सकेगा। 243ध. वार्ड समितियों, आदि का गठन और संरचना--(1) ऐसी नगरपालिका के, जिसकी जनसंख्या तीन लाख या उससे अधिक है, प्रादेशिक क्षेत्र के भीतर वार्ड समितियों का गठन किया जाएगा, जो एक या अधिक वार्र्डों से मिलकर बनेगी। (2) राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा,-- (क) वार्ड समिति की संरचना और उसके प्रादेशिक क्षेत्र की बाबत; (ख) उस रीति की बाबत जिससे किसी वार्ड समिति में स्थान भरे जाएँगे, उपबंध कर सकेगा। (3) वार्ड समिति के प्रादेशिक क्षेत्र के भीतर किसी वार्ड का प्रतिनिधित्व करने वाला किसी नगरपालिका का सदस्य उस समिति का सदस्य होगा। (4) जहाँ कोई वार्ड समिति,-- (क) एक वार्ड से मिलकर बनती है वहाँ नगरपालिका में उस वार्ड का प्रतिनिधित्व करने वाला सदस्य; या (ख) दो या अधिक वार्डों से मिलकर बनती है वहाँ नगरपालिका में ऐसे वार्डों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों में से एक सदस्य, जो उस वार्ड समिति के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाएगा, उस समिति का अध्यक्ष होगा। (5) इस अनुच्छेद की किसी बात से यह नहीं समझा जाएगा कि वह किसी राज्य के विधान-मंडल को वार्ड समितियों के ओंतरिक्त समितियों का गठन करने के लिए कोई उपबंध करने से निवारित करती है। 243न. स्थानों का आरक्षण--(1) प्रत्येक नगरपालिका में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे और इस प्रकार आरक्षित स्थानों की संख्‍या का अनुपात, उस नगरपालिका में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्‍या से यथाशक्य वही होगा जो उस नगरपालिका क्षेत्र में अनुसूचित जातियों की अथवा उस नगरपालिका क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या का अनुपात उस क्षेत्र की कुल जनसंख्या से है और ऐसे स्थान किसी नगरपालिका के भिन्न-भिन्न निर्वाचन-क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आबंटित किए जा सकेंगे। (2) खंड (1) के अधीन आरक्षित स्थानों की कुल संख्‍या के कम से कम एक-तिहाई स्थान, यथास्थिति, अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे। (3) प्रत्येक नगरपालिका में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्‍या के कम से कम एक-तिहाई स्थान (जिनके अंतर्गत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की स्त्रियों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्‍या भी है) स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे और ऐसे स्थान किसी नगरपालिका के भिन्न-भिन्न निर्वाचन-क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आबंटित किए जा सकेंगे। (4) नगरपालिकाओं में अध्यक्षों के पद अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और स्त्रियों के लिए ऐसी रीति से आरक्षित रहेंगे, जो राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, उपबंधित करे। (5) खंड (1) और खंड (2) के अधीन स्थानों का आरक्षण और खंड (4) के अधीन अध्यक्षों के पदों का आरक्षण (जो स्त्रियों के लिए आरक्षण से भिन्न है) अनुच्छेद 334 में विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति पर प्रभावी नहीं रहेगा। (6) इस भाग की कोई बात किसी राज्य के विधान-मंडल को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में किसी नगरपालिका में स्थानों के या नगरपालिकाओं में अध्यक्षों के पद के आरक्षण के लिए कोई उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी। 243प. नगरपालिकाओं की अवधि, आदि--(1) प्रत्येक नगरपालिका, यदि तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से पांच वर्ष तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं: परंतु किसी नगरपालिका का विघटन करने के पूर्व उसे सुनवाई का उचित अवसर दिया जाएगा। (2) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के किसी संशोधन से किसी स्तर पर ऐसी नगरपालिका का, जो ऐसे संशोधन के ठीक पूर्व कार्य कर रही है, तब तक विघटन नहीं होगा जब तक खंड (1) में विनिर्दिष्ट उसकी अवधि समाप्त नहीं हो जाती। (3) किसी नगरपालिका का गठन करने के लिए निर्वाचन,-- (क) खंड (1) में विनिर्दिष्ट उसकी अवधि की समाप्ति के पूर्व; (ख) उसके विघटन की तारीख से छह मास की अवधि की समाप्ति के पूर्व, पूरा किया जाएगा: परंतु जहाँ वह शेष अवधि, जिसके लिए कोई विघटित नगरपालिका बनी रहती, छह मास से कम है वहां ऐसी अवधि के लिए उस नगरपालिका का गठन करने के लिए इस खंड के अधीन कोई निर्वाचन कराना आवश्यक नहीं होगा। (4) किसी नगरपालिका की अवधि की समाप्ति के पूर्व उस नगरपालिका के विघटन पर गठित की गई कोई नगरपालिका, उस अवधि के केवल शेष भाग के लिए बनी रहेगी जिसके लिए विघटित नगरपालिका खंड (1) के अधीन बनी रहती, यदि वह इस प्रकार विघटित नहीं की जाती। 243फ. सदस्यता के लिए निरर्हताएँ--(1) कोई व्यक्ति किसी नगरपालिका का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा,-- (क) यदि वह संबंधित राज्य के विधान-मंडल के निर्वाचनों के प्रयोजनों के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया जाता है: परंतु कोई व्यक्ति इस आधार पर निरर्हित नहीं होगा कि उसकी आयु पच्चीस वर्ष से कम है, यदि उसने इक्कीस वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है; (ख) यदि वह राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया जाता है। (2) यदि यह प्रश्न उठता है कि किसी नगरपालिका का कोई सदस्य खंड (1) में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न ऐसे प्राधिकारी को, और ऐसी रीति से, जो राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, उपबंधित करे, विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा। 243ब. नगरपालिकाओं, आदि की शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तरदायित्व--इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा,-- (क) नगरपालिकाओं को ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान कर सकेगा, जो उन्हें स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हों और ऐसी विधि में नगरपालिकाओं को, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाएँ, निम्नलिखित के संबंध में शक्तियाँ और उत्तरदायित्व न्यागत करने के लिए उपबंध किए जा सकेंगे, अर्थात:-- (i) आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएँ तैयार करना; (ii) ऐसे कृत्यों का पालन करना और ऐसी स्कीमों को, जो उन्हें सौंपी जाएँ, जिनके अंतर्गत वे स्कीमें भी हैं, जो बारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध विषयों के संबंध में हैं, कार्यान्वित करना; (ख) समितियों को ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान कर सकेगा जो उन्हें अपने को प्रदत्त उत्तरदायित्वों को, जिनके अन्तर्गत वे उत्तरदायित्व भी हैं जो बारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध विषयों के संबंध में हैं, कार्यान्वित करने में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हों। 243भ. नगरपालिकाओं द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्ति और उनकी निधियाँ--किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा,-- (क) ऐसे कर, शुल्क, पथ कर और फीसें उद्‌गृहीत, संगृहीत और विनियोजित करने के लिए किसी नगरपालिका को, ऐसी प्रक्रिया के अनुसार और ऐसे निर्बंधनों के अधीन रहते हुए, प्राधिकृत कर सकेगा; (ख) राज्य सरकार द्वारा उद्‌गृहीत और संगृहीत ऐसे कर, शुल्क, पथकर और फीसें किसी नगरपालिका को, ऐसे प्रयोजनों के लिए, तथा ऐसी शर्तों और निर्बंधनों के अधीन रहते हुए, समनुदिष्ट कर सकेगा; (ग) राज्य की संचित निधि में से नगरपालिकाओं के लिए ऐसे सहायता-अनुदान देने के लिए उपबंध कर सकेगा; और (घ) नगरपालिकाओं द्वारा या उनकी ओर से क्रमशः प्राप्त किए गए सभी धनों को जमा करने के लिए ऐसी निधियों का गठन करने और उन निधियों में से ऐसे धनों को निकालने के लिए भी उपबंध कर सकेगा, जो विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएँ। 243म. वित्त आयोग--(1) अनुच्छेद 243झ के अधीन गठित वित्त आयोग नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति का भी पुनर्विलोकन करेगा और जो-- (क)(i) राज्य द्वारा उद्‌गृहणीय ऐसे करों, शुल्कों, पथ करों और फीसों के ऐसे शुद्ध आगमों के राज्य और नगरपालिकाओं के बीच, जो इस भाग के अधीन उनमें विभाजित किए जाएँ, वितरण को और सभी स्तरों पर नगरपालिकाओं के बीच ऐसे आगमों के तत्संबंधी भाग के आबंटन को; (ii) ऐसे करों, शुल्कों, पथ करों और फीसों के अवधारण को, जो नगरपालिकाओं को समनुदिष्ट की जा सकेंगी या उनके द्वारा विनियोजित की जा सकेंगी; (iii) राज्य की संचित निधि में से नगरपालिकाओं के लिए सहायता अनुदान को, शासित करने वाले सिद्धांतों के बारे में; (ख) नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए आवश्यक अध्युपायों के बारे में; (ग) नगरपालिकाओं के सुदृढ़ वित्त के हित में राज्यपाल द्वारा वित्त आयोग को निर्दिष्ट किए गए किसी अन्य विषय के बारे में, राज्यपाल को सिफारिश करेगा। (2) राज्यपाल इस अनुच्छेद के अधीन आयोग द्वारा की गई प्रत्येक सिफारिश को, उस पर की गई कार्रवाई के स्पष्टीकारक ज्ञापन सहित, राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा। 243य. नगरपालिकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा--किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, नगरपालिकाओं द्वारा लेखे रखे जाने और ऐसे लेखाओं की संपरीक्षा करने के बारे में उपबंध कर सकेगा। 243यक. नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचन--(1) नगरपालिकाओं के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने का और उन सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण, अनुच्छेद 243 में निर्दिष्ट राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा। (2) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, नगरपालिकाओं के निर्वाचनों से संबंधित या संसक्त सभी विषयों के संबंध में उपबंध कर सकेगा। 243यख. संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होना--इस भाग के उपबंध संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होंगे और किसी संघ राज्यक्षेत्र को उनके लागू होने में इस प्रकार प्रभावी होंगे मानो किसी राज्य के राज्यपाल के प्रति निर्देश, अनुच्छेद 239 के अधीन नियुक्त संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक के प्रति निर्देश हों और किसी राज्य के विधान-मंडल या विधान सभा के प्रति निर्देश, किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में, जिसमें विधान सभा है, उस विधान सभा के प्रति निर्देश हों: परंतु राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा, यह निदेश दे सकेगा कि इस भाग के उपबंध किसी संघ राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग को ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, लागू होंगे, जो वह अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे। 243यग. इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना--(1) इस भाग की कोई बात अनुच्छेद 244 के खंड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और इसके खंड (2) में निर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों को लागू नहीं होगी। (2) इस भाग की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह पश्चिमी बंगाल राज्य के दार्जिलिंग जिले के पर्वतीय क्षेत्रों के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन गठित दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद्‍ के कृत्यों और शक्तियों पर प्रभाव डालती है। (3) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संसद‌, विधि द्वारा, इस भाग के उपबंधों का विस्तार खंड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों पर, ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, कर सकेगी, जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएँ और ऐसी किसी विधि को अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझा जाएगा। 243यघ. जिला योजना के लिए समिति--(1) प्रत्येक राज्य में जिला स्तर पर, जिले में पंचायतों और नगरपालिकाओं द्वारा तैयार की गई योजनाओं का समेकन करने और संपूर्ण जिले के लिए एक विकास योजना प्रारूप तैयार करने के लिए, एक जिला योजना समिति का गठन किया जाएगा। (2) राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, निम्नलिखित की बाबत उपबंध कर सकेगा, अर्थात्‌:-- (क) जिला योजना समितियों की संरचना; (ख) वह रीति जिससे ऐसी समितियों में स्थान भरे जाएँगे: परंतु ऐसी समिति की कुल सदस्य संख्‍या के कम से कम चार बटा पाँच सदस्य, जिला स्तर पर पंचायत के और जिले में नगरपालिकाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा, अपने में से, जिले में ग्रामीण क्षेत्रों की और नगरीय क्षेत्रों की जनसंख्या के अनुपात के अनुसार निर्वाचित किए जाएँगे; (ग) जिला योजना से संबंधित ऐसे कृत्य जो ऐसी समितियों को समनुदिष्ट किए जाएँ; (घ) वह रीति, जिससे ऐसी समितियों के अध्यक्ष चुने जाएँगे। (3) प्रत्येक जिला योजना समिति, विकास योजना प्रारूप तैयार करने में,-- (क) निम्नलिखित का ध्यान रखेगी, अर्थात्‌:-- (त्) पंचायतों और नगरपालिकाओं के सामान्य हित के विषय, जिनके अंतर्गत स्थानिक योजना, जल तथा अन्य भौतिक और प्राकृतिक संसाधनों में हिस्सा बंटाना, अवसंरचना का एकीकृत विकास और पर्यावरण संरक्षण है; (त्त्) उपलब्ध वित्तीय या अन्य संसाधनों की मात्रा और प्रकार; (ख) ऐसी संस्थाओं और संगठनों से परामर्श करेगी जिन्हें राज्यपाल, आदेश द्वारा, विनिर्दिष्ट करे। (4) प्रत्येक जिला योजना समिति का अध्यक्ष, वह विकास योजना, जिसकी ऐसी समिति द्वारा सिफारिश की जाती है, राज्य सरकार को भेजेगा। 243यङ. महानगर योजना के लिए समिति--(1) प्रत्येक महानगर क्षेत्र में, संपूर्ण महानगर क्षेत्र के लिए विकास योजना प्रारूप तैयार करने के लिए, एक महानगर योजना समिति का गठन किया जाएगा। (2) राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, निम्नलिखित की बाबत उपबंध कर सकेगा, अर्थात्‌:-- (क) महानगर योजना समितियों की संरचना; (ख) वह रीति जिससे ऐसी समितियों में स्थान भरे जाएँगे: परंतु ऐसी समिति के कम से कम दो-तिहाई सदस्य, महानगर क्षेत्र में नगरपालिकाओं के निर्वाचित सदस्यों और पंचायतों के अध्यक्षों द्वारा, अपने में से, उस क्षेत्र में नगरपालिकाओं की और पंचायतों की जनसंख्या के अनुपात के अनुसार निर्वाचित किए जाएँगे; (ग) ऐसी समितियों में भारत सरकार और राज्य सरकार का तथा ऐसे संगठनों और संस्थाओं का प्रतिनिधित्व जो ऐसी समितियों को समनुदिष्ट कृत्यों को कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक समझे जाएँ; (घ) महानगर क्षेत्र के लिए योजना और समन्वय से संबंधित ऐसे कृत्य जो ऐसी समितियों को समनुदिष्ट किए जाएँ; (घ) वह रीति, जिससे ऐसी समितियों के अध्यक्ष चुने जाएँगे। (3) प्रत्येक महानगर योजना समिति, विकास योजना प्रारूप तैयार करने में,-- (क) निम्नलिखित का ध्यान रखेगी, अर्थात्‌:-- (i) महानगर क्षेत्र में नगरपालिकाओं और पंचायतों द्वारा तैयार की गई योजनाएं; (ii) नगरपालिकाओं और पंचायतों के सामान्य हित के विषय, जिनके अंतर्गत उस क्षेत्र की समन्वित स्थानिक योजना, जल तथा अन्य भौतिक और प्राकृतिक संसाधनों में हिस्सा बंटाना, अवसंरचना का एकीकृत विकास और पर्यावरण संरक्षण है; (iii) भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा निश्चित समस्त उद्देश्य और पूर्विकताएँ; (iV) उन विनिधानों की मात्रा और प्रकृति जो भारत सरकार और राज्य सरकार के अभिकरणों द्वारा महानगर क्षेत्र में किए जाने संभाव्य हैं तथा अन्य उपलब्ध वित्तीय या अन्य संसाधन; (ख) ऐसी संस्थाओं और संगठनों से परामर्श करेगी जिन्हें राज्यपाल, आदेश द्वारा, विनिर्दिष्ट करे। (4) प्रत्येक महानगर योजना समिति का अध्यक्ष, वह विकास योजना, जिसकी ऐसी समिति द्वारा सिफारिश की जाती है, राज्य सरकार को भेजेगा। 243यच. विद्यमान विधियों और नगरपालिकाओं का बना रहना--इस भाग में किसी बात के होते हुए भी, संविधान (चौहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1992 के प्रारंभ के ठीक पूर्व किसी राज्य में प्रवृत्त नगरपालिकाओं से संबंधित किसी विधि का कोई उपबंध, जो इस भाग के उपबंधों से असंगत है, जब तक सक्षम विधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसे संशोधित या निरसित नहीं कर दिया जाता है या जब तक ऐसे प्रारंभ से एक वर्ष समाप्त नहीं हो जाता है, इनमें से जो भी पहले हो, तब तक प्रवृत्त बना रहेगा : परंतु ऐसे प्रारंभ के ठीक पूर्व विद्यमान सभी नगरपालिकाएँ, यदि उस राज्य की विधान सभा द्वारा या ऐसे राज्य की दशा में, जिसमें विधान परिषद्‍ हैं, उस राज्य के विधान-मंडल के प्रत्येक सदन द्वारा पारित इस आशय के संकल्प द्वारा पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती हैं तो, अपनी अवधि की समाप्ति तक बनी रहेंगी। 243यछ. निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन--इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, -- (क) अनुच्छेद 243यक के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के लिए तात्पर्यित किसी ऐसी विधि की विधिमान्यता, जो निर्वाचन-क्षेत्रों के परिसीमन या ऐसे निर्वाचन-क्षेत्रों को स्थानों के आबंटन से संबंधित है, किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं की जाएगी; (ख) किसी नगरपालिका के लिए कोई निर्वाचन, ऐसी निर्वाचन अर्जी पर ही प्रश्नगत किया जाएगा जो ऐसे प्राधिकारी को और ऐसी रीति से प्रस्तुत की गई है, जिसका किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन उपबंध किया जाए, अन्यथा नहीं। भाग 10: अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र 244. अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन--(1) पाँचवीं अनुसूची के उपबंध 1[असम, 2[3[मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम]] राज्यों] से भिन्न 4*** किसी राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के लिए लागू होंगे। (2) छठी अनुसूची के उपबंध 1[असम, 2[5[मेघालय, त्रिपुरा] और मिजोरम राज्यों] के] जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के लिए लागू होंगे। 6[244क. असम के कुछ जनजाति क्षेत्रों को समाविष्ट करने वाला एक स्वशासी राज्य बनाना और उसके लिए स्थानीय विधान-मंडल या मंत्रि-परिषद का या दोनों का सृजन--(1) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संसद विधि द्वारा असम राज्य के भीतर एक स्वशासी राज्य बना सकेगी, जिसमें छठी अनुसूची के पैरा 20 से संलग्न सारणी के 7[भाग 1] में विनिर्दिष्ट सभी या कोई जनजाति क्षेत्र (पूर्णतः या भागतः) समाविष्ट होंगे और उसके लिए-- (क) उस स्वशासी राज्य के विधान-मंडल के रूप में कार्य करने के लिए निर्वाचित या भागतः नामनिर्देशित और भागतः निर्वाचित निकाय का, या (ख) मंत्रि-परिषद का, या दोनों का सृजन कर सकेगी, जिनमें से प्रत्येक का गठन, शक्तियाँ और कृत्य वे होंगे जो उस विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएँ। (2) खंड (1) में निर्दिष्ट विधि, विशिष्टतया,-- (क) राज्य सूची या समवर्ती सूची में प्रगणित वे विषय विनिर्दिष्ट कर सकेगी जिनके संबंध में स्वशासी राज्य के विधान-मंडल को संपूर्ण स्वशासी राज्य के लिए या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाने की शक्ति, असम राज्य के विधान-मंडल का अपवर्जन करके या अन्यथा, होगी; (ख) वे विषय परिनिश्चित कर सकेगी जिन पर उस स्वशासी राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार होगा; (ग) यह उपबंध कर सकेगी कि असम राज्य द्वारा उद्‌गृहीत कोई कर स्वशासी राज्य को वहाँ तक सौंपा जाएगा जहाँ तक उसके आगम स्वशासी राज्य से प्राप्त हुए माने जा सकते हैं; (घ) यह उपबंध कर सकेगी कि इस संविधान के किसी अनुच्छेद में राज्य के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत स्वशासी राज्य के प्रति निर्देश है; और 1 पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) ''असम राज्य'' के स्थान पर प्रतिस्थापित। 2 मिजोरम राज्य अधिनियम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) ''मेघालय और त्रिपुरा'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। 3 संविधान (उनचासवाँ संशोधन) अधिनियम, 1984 की धारा 2 द्वारा ''और मेघालय'' के स्थान पर (1-4-1985 से) प्रतिस्थापित। 4 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट'' शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया। 5 मिजोरम राज्य अधिनियम, 1986 (1986 का 34) की धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) ''मेघालय और त्रिपुरा राज्यों और मिजोरम संघ राज्यक्षेत्र'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। 6 संविधान (बाईसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1969 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित। 7 पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) ''भाग क'' के स्थान पर प्रतिस्थापित। (ङ) ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक या पारिणामिक उपबंध कर सकेगी जा आवश्यक समझे जाएँ। (3) पूर्वोक्त प्रकार की किसी विधि का कोई संशोधन, जहाँ तक वह संशोधन खंड (2) के उपखंड (क) या उपखंड (ख) में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी से संबंधित है, तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक वह संशोधन संसद के प्रत्येक सदन में उपस्थित और मत देने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा पारित नहीं कर दिया जाता है। (4) इस अनुच्छेद में निर्दिष्ट विधि को अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन इस बात के होते हुए भी नहीं समझा जाएगा कि उसमें कोई ऐसा उपबंध अंतर्विष्ट है जो इस संविधान का संशोधन करता है या संशोधन करने का प्रभाव रखता है। भाग 11: संघ और राज्यों के बीच संबंध: अध्‍याय 1- विधायी संबंध विधायी शक्तियों का वितरण 245. संसद द्वारा और राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों का विस्तार--(1) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बना सकेगी और किसी राज्य का विधान-मंडल संपूर्ण राज्य या उसके किसी भाग के लिए विधि बना सकेगा। (2) संसद द्वारा बनाई गई कोई विधि इस आधार पर अधिमान्य नहीं समझी जाएगी कि उसका राज्यक्षेत्रातीत प्रवर्तन होगा। 246. संसद द्वारा और राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों की विषय-वस्तु--(1) खंड (2) और खंड (3) में किसी बात के होते हुए भी, संसद को सातवीं अनुसूची की सूची 1 में (जिसे इस संविधान में ''संघ सूची'' कहा गया है) प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने की अनन्य शक्ति है। (2) खंड (3) में किसी बात के होते हुए भी, संसद को और खंड (1) के अधीन रहते हुए, 1*** किसी राज्य के विधान-मंडल को भी, सातवीं अनुसूची की सूची 3 में (जिसे इस संविधान में ''समवर्ती सूची'' कहा गया है) प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने की शक्ति है। (3) खंड (1) और खंड (2) के अधीन रहते हुए, 1*** किसी राज्य के विधान-मंडल को, सातवीं अनुसूची की सूची 2 में (जिसे इस संविधान में ''राज्य सूची'' कहा गया है) प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में उस राज्य या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाने की अनन्य शक्ति है। (4) संसद को भारत के राज्यक्षेत्र के ऐसे भाग के लिए 2[जो किसी राज्य] के अंतर्गत नहीं है, किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने की शक्ति है, चाहे वह विषय राज्य सूची में प्रगणित विषय ही क्यों न हो। 247. कुछ अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना का उपबंध करने की संसद की शक्ति-- इस अध्‍याय में किसी बात के होते हुए भी, संसद अपने द्वारा बनाई गई विधियों के या किसी विद्यमान विधि के, जो संघ सूची में प्रगणित विषय के संबंध में है, अधिक अच्छे प्रशासन के लिए अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना का विधि द्वारा उपबंध कर सकेगी। 248. अवशिष्ट विधायी शक्तियाँ--(1) संसद को किसी ऐसे विषय के संबंध में, जो समवर्ती सूची या राज्य सूची में प्रगणित नहीं है, विधि बनाने की अनन्य शक्ति है। (2) ऐसी शक्ति के अंतर्गत ऐसे कर के अधिरोपण के लिए जो उन सूचियों में से किसी में वर्णित नहीं है, विधि बनाने की शक्ति है। 249. राज्य सूची में के विषय के संबंध में राष्ट्रीय हित में विधि बनाने की संसद की शक्ति--(1) इस अध्‍याय के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, यदि राज्य सभा ने उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा घोषित किया है कि राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक या समीचीन है कि संसद राज्य सूची में प्रगणित ऐसे विषय के संबंध में, जो उस संकल्प में विनिर्दिष्ट है, विधि बनाए तो जब तक वह संकल्प प्रवृत्त है, संसद के लिए उस विषय के संबंध में भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाना विधिपूर्ण होगा। 1. संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट'' शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया। 2 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में'' के स्थान पर प्रतिस्थापित। (2) खंड (1) के अधीन पारित संकल्प एक वर्ष से अनधिक ऐसी अवधि के लिए प्रवृत्त रहेगा जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाए : परंतु यदि और जितनी बार किसी ऐसे संकल्प को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प खंड (1) में उपबंधित रीति से पारित हो जाता है तो और उतनी बार ऐसा संकल्प उस तारीख से, जिसको वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवृत्त नहीं रहता, एक वर्ष की और अवधि तक प्रवृत्त रहेगा। (3) संसद द्वारा बनाई गई कोई विधि, जिसे संसद खंड (1) के अधीन संकल्प के पारित होने के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होती, संकल्प के प्रवृत्त न रहने के पश्चात्‌ छह मास की अवधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय प्रभावी नहीं रहेगी जिन्हें उक्त अवधि की समाप्ति से पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है। 250. यदि आपात की उद्‌घोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्य सूची में के विषय के संबंध में विधि बनाने की संसद की शक्ति--(1) इस अध्‍याय में किसी बात के होते हुए भी, संसद को, जब तक आपात की उद्‌घोषणा प्रवर्तन में है, राज्य सूची में प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाने की शक्ति होगी। (2) संसद द्वारा बनाई गई कोई विधि, जिसे संसद आपात की उद्‌घोषणा के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होती, उद्‌घोषणा के प्रवर्तन में न रहने के पश्चात्‌ छह मास की अवधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय प्रभावी नहीं रहेगी जिन्हें उक्त अवधि की समाप्ति से पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है। 251. संसद द्वारा अनुच्छेद 249 और अनुच्छेद 250 के अधीन बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति--अनुच्छेद 249 और अनुच्छेद 250 की कोई बात किसी राज्य के विधान-मंडल की ऐसी विधि बनाने की शक्ति को, जिसे इस संविधान के अधीन बनाने की शक्ति उसको है, निर्बंधित नहीं करेगी किंतु यदि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि का कोई उपबंध संसद द्वारा बनाई गई विधि के, जिसे उक्त अनुच्छेदों में से किसी अनुच्छेद के अधीन बनाने की शक्ति संसद को है, किसी उपबंध के विरुद्ध है तो संसद द्वारा बनाई गई विधि अभिभावी होगी चाहे वह राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि से पहले या उसके बाद में पारित की गई हो और राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि उस विरोध की मात्रा तक अप्रवर्तनीय होगी किंतु ऐसा तभी तक होगा जब तक संसद द्वारा बनाई गई विधि प्रभावी रहती है। 252. दो या अधिक राज्यों के लिए उनकी सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति और ऐसी विधि का किसी अन्य राज्य द्वारा अंगीकार किया जाना--(1) यदि किन्हीं दो या अधिक राज्यों के विधान-मंडलों को यह वांछनीय प्रतीत होता है कि उन विषयों में से, जिनके संबंध में संसद को अनुच्छेद 249 और अनुच्छेद 250 में यथा उपबंधित के सिवाय राज्यों के लिए विधि बनाने की शक्ति नहीं है, किसी विषय का विनियमन ऐसे राज्यों में संसद विधि द्वारा करे और यदि उन राज्यों के विधान-मंडलों के सभी सदन उस आशय के संकल्प पारित करते हैं तो उस विषय का तदनुसार विनियमन करने के लिए कोई अधिनियम पारित करना संसद के लिए विधिपूर्ण होगा और इस प्रकार पारित अधिनियम ऐसे राज्यों को लागू होगा और ऐसे अन्य राज्य को लागू होगा, जो तत्पश्चात्‌ अपने विधान-मंडल के सदन द्वारा या जहाँ दो सदन हैं वहाँ दोनों सदनों में से प्रत्येक सदन इस निमित्त पारित संकल्प द्वारा उसको अंगीकार कर लेता है। (2) संसद द्वारा इस प्रकार पारित किसी अधिनियम का संशोधन या निरसन इसी रीति से पारित या अंगीकृत संसद के अधिनियम द्वारा किया जा सकेगा, किंतु उसका उस राज्य के संबंध में संशोधन या निरसन जिसको वह लागू होता है, उस राज्य के विधान-मंडल के अधिनियम द्वारा नहीं किया जाएगा। 253. अंतरराष्ट्रीय करारों को प्रभावी करने के लिए विधान-- इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, संसद को किसी अन्य देश या देशों के साथ की गई किसी संधि, करार या अभिसमय अथवा किसी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, संगम या अन्य निकाय में किए गए किसी विनिश्चय के कार्यान्वयन के लिए भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए कोई विधि बनाने की शक्ति है। 254. संसद द्वारा बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति-- (1) यदि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि का कोई उपबंध संसद द्वारा बनाई गई विधि के, जिसे अधिनियमित करने के लिए संसद सक्षम है, किसी उपबंध के या समवर्ती सूची में प्रगणित किसी विषय के संबंध में विद्यमान विधि के किसी उपबंध के विरुद्ध है तो खंड (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, यथास्थिति, संसद द्वारा बनाई गई विधि, चाहे वह ऐसे राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि से पहले या उसके बाद में पारित की गई हो, या विद्यमान विधि, अभिभावी होगी और उस राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि उस विरोध की मात्रा तक शून्य होगी। (2) जहाँ 1*** राज्य के विधान-मंडल द्वारा समवर्ती सूची में प्रगणित किसी विषय के संबंध में बनाई गई विधि में कोई ऐसा उपबंध अंतर्विष्ट है जो संसद द्वारा पहले बनाई गई विधि के या उस विषय के संबंध में किसी विद्यमान विधि के उपबंधों के विरुद्ध है तो यदि ऐसे राज्य के विधान-मंडल द्वारा इस प्रकार बनाई गई विधि को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखा गया है और उस पर उसकी अनुमति मिल गई है तो वह विधि उस राज्य में अभिभावी होगी : परंतु इस खंड की कोई बात संसद को उसी विषय के संबंध में कोई विधि, जिसके अंतर्गत ऐसी विधि है, जो राज्य के विधान-मंडल द्वारा इस प्रकार बनाई गई विधि का परिवर्धन, संशोधन, परिवर्तन या निरसन करती है, किसी भी समय अधिनियमित करने से निवारित नहीं करेगी। 255. सिफारिशों और पूर्व मंजूरी के बारे में अपेक्षाओं को केवल प्रक्रिया के विषय मानना--यदि संसद के या 1*** किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी अधिनियम को-- (क) जहाँ राज्यपाल की सिफारिश अपेक्षित थी वहाँ राज्यपाल या राष्ट्रपति ने, (ख) जहाँ राजप्रमुख की सिफारिश अपेक्षित थी वहाँ राजप्रमुख या राष्ट्रपति ने, (ग) जहाँ राष्ट्रपति की सिफारिश या पूर्व मंजूरी अपेक्षित थी वहाँ राष्ट्रपति ने, अनुमति दे दी है तो ऐसा अधिनियम और ऐसे अधिनियम का कोई उपबंध केवल इस कारण अधिमान्य नहीं होगा कि इस संविधान द्वारा अपेक्षित कोई सिफारिश नहीं की गई थी या पूर्व मंजूरी नहीं दी गई थी। 1 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट'' शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया। भाग 11: संघ और राज्यों के बीच संबंध: अध्याय 2- प्रशासनिक संबंध साधारण 256. राज्यों की और संघ की बाध्यता--प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का इस प्रकार प्रयोग किया जाएगा जिससे संसद द्वारा बनाई गई विधियों का और ऐसी विद्यमान विधियों का, जो उस राज्य में लागू हैं, अनुपालन सुनिश्चित रहे और संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को ऐसे निदेश देने तक होगा जो भारत सरकार को उस प्रयोजन के लिए आवश्यक प्रतीत हों। 257. कुछ दशाओं में राज्यों पर संघ का नियंत्रण--(1) प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का इस प्रकार प्रयोग किया जाएगा जिससे संघ की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में कोई अड़चन न हो या उस पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े और संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को ऐसे निदेश देने तक होगा जो भारत सरकार को इस प्रयोजन के लिए आवश्यक प्रतीत हों। (2) संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्य को ऐसे संचार साधनों के निर्माण और बनाए रखने के बारे में निदेश देने तक भी होगा जिनका राष्ट्रीय या सैनिक महत्व का होना उस निदेश में घोषित किया गया है: परंतु इस खंड की कोई बात किसी राजमार्ग या जल मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग या राष्ट्रीय जल मार्ग घोषित करने की संसद की शक्ति को अथवा इस प्रकार घोषित राजमार्ग या जल मार्ग के बारे में संघ की शक्ति को अथवा सेना, नौसेना और वायुसेना संकर्म विषयक अपने कृत्यों के भागरूप संचार साधनों के निर्माण और बनाए रखने की संघ की शक्ति को निर्बंधित करने वाली नहीं मानी जाएगी। (3) संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य में रेलों के संरक्षण के लिए किए जाने वाले उपायों के बारे में उस राज्य को निदेश देने तक भी होगा। (4) जहाँ खंड (2) के अधीन संचार साधनों के निर्माण या बनाए रखने के बारे में अथवा खंड (3) के अधीन किसी रेल के संरक्षण के लिए किए जाने वाले उपायों के बारे में किसी राज्य को दिए गए किसी निदेश के पालन में उस खर्च से अधिक खर्च हो गया है जो, यदि ऐसा निदेश नहीं दिया गया होता तो राज्य के प्रसामान्य कर्तव्यों के निर्वहन में खर्च होता वहाँ उस राज्य द्वारा इस प्रकार किए गए अतिरिक्त खर्चों के संबंध में भारत सरकार द्वारा उस राज्य को ऐसी राशि का, जो करार पाई जाए या करार के अभाव में ऐसी राशि का, जिसे भारत के मुख्‍य न्यायमूर्ति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ अवधारित करे, संदाय किया जाएगा। 1[257क. संघ के सशस्त्र बलों या अन्य बलों के अभिनियोजन द्वारा राज्यों की सहायता। संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 33 द्वारा (20-6-1979 से) निरसित। 258. कुछ दशाओं में राज्यों को शक्ति प्रदान करने आदि की संघ की शक्ति--(1) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति, किसी राज्य की सरकार की सहमति से उस सरकार को या उसके अधिकारियों को ऐसे किसी विषय से संबंधित कृत्य, जिन पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, सशर्त या बिना शर्त सौंप सकेगा। (2) संसद द्वारा बनाई गई विधि, जो किसी राज्य को लागू होती है ऐसे विषय से संबंधित होने पर भी, जिसके संबंध में राज्य के विधान-मंडल को विधि बनाने की शक्ति नहीं है, उस राज्य या उसके अधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्ति प्रदान कर सकेगी और उन पर कर्तव्य अधिरोपित कर सकेगी या शक्तियों का प्रदान किया जाना और कर्तव्यों का अधिरोपित किया जाना प्राधिकृत कर सकेगी। (3) जहाँ इस अनुच्छेद के आधार पर किसी राज्य अथवा उसके अधिकारियों या प्राधिकारियों को शक्तियाँ प्रदान की गई हैं या उन पर कर्तव्य अधिरोपित किए गए हैं वहाँ उन शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग के संबंध में राज्य द्वारा प्रशासन में किए गए अतिरिक्त खर्र्चों के संबंध में भारत सरकार द्वारा उस राज्य को ऐसी राशि का, जो करार पाई जाए या करार के अभाव में ऐसी राशि का, जिसे भारत के मुख्‍य न्यायमूर्ति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ अवधारित करे, संदाय किया जाएगा। 2[258क. संघ को कृत्य सौंपने की राज्यों की शक्ति-- इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, किसी राज्य का राज्यपाल, भारत सरकार की सहमति से उस सरकार को या उसके अधिकारियों को ऐसे किसी विषय से संबंधित कृत्य, जिन पर उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, सशर्त या बिना शर्त सौंप सकेगा। 259. [पहली अनुसूची के भाग ख के राज्यों के सशस्त्र बल।] – संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा निरसित। 260. भारत के बाहर के राज्यक्षेत्रों के संबंध में संघ की अधिकारिता--भारत सरकार किसी ऐसे राज्यक्षेत्र की सरकार से, जो भारत के राज्यक्षेत्र का भाग नहीं है, करार करके ऐसे राज्यक्षेत्र की सरकार में निहित किन्हीं कार्यपालक, विधायी या न्यायिक कृत्यों का भार अपने।पर ले सकेगी, किन्तु प्रत्येक ऐसा करार विदेशी अधिकारिता के प्रयोग से संबंधित तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन होगा और उससे शासित होगा। 261. सार्वजनिक कार्य, अभिलेख और न्यायिक कार्यवाहियाँ--(1) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र, संघ के और प्रत्येक राज्य के सार्वजनिक कार्यों, अभिलेखों और न्यायिक कार्यवाहियों को पूरा विश्वास और पूरी मान्यता दी जाएगी। 1 संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 43 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित। 2 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 18 द्वारा अंतःस्थापित। (2) खंड (1) में निर्दिष्ट कार्यों, अभिलेखों और कार्यवाहियों को साबित करने की रीति और शर्तें तथा उनके प्रभाव का अवधारण संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा उपबंधित रीति के अनुसार किया जाएगा। (3) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में सिविल न्यायालयों द्वारा दिए गए अंतिम निर्णयों या आदेशों का उस राज्यक्षेत्र के भीतर कहीं भी विधि के अनुसार निष्पादन किया जा सकेगा। जल संबंधी विवाद 262. अंतरराज्यिक नदियों या नदी-दूनों के जल संबंधी विवादों का न्यायनिर्णयन--(1) संसद, विधि द्वारा, किसी अंतरराज्यिक नदी या नदी-दून के या उसमें जल के प्रयोग, वितरण या नियंत्रण के संबंध में किसी विवाद या परिवाद के न्यायनिर्णयन के लिए उपबंध कर सकेगी। (2) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संसद, विधि द्वारा, उपबंध कर सकेगी कि उच्चतम न्यायालय या कोई अन्य न्यायालय खंड (1) में निर्दिष्ट किसी विवाद या परिवाद के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग नहीं करेगा। राज्यों के बीच समन्वय 263. अंतरराज्य परिषद के संबंध में उपबंध--यदि किसी समय राष्ट्रपति को यह प्रतीत होता है कि ऐसी परिषद की स्थापना से लोक हित की सिद्धि होगी जिसे-- (क) राज्यों के बीच जो विवाद उत्पन्न हो गए हों उनकी जाँच करने और उन पर सलाह देने, (ख) कुछ या सभी राज्यों के अथवा संघ और एक या अधिक राज्यों के सामान्य हित से संबंधित विषयों के अन्वेषण और उन पर विचार-विमर्श करने, या (ग) ऐसे किसी विषय पर सिफारिश करने और विशिष्टतया उस विषय के संबंध में नीति और कार्रवाई के अधिक अच्छे समन्वय के लिए सिफारिश करने, के कर्तव्य का भार सौंपा जाए तो राष्ट्रपति के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह आदेश द्वारा ऐसी परिषद की स्थापना करे और उस परिषद द्वारा किए जाने वाले कर्तव्यों की प्रकृति को तथा उसके संगठन और प्रक्रिया को परिनिश्चित करे। भाग 12: वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद: अध्याय 1- वित्त साधारण 1[264. निर्वचन--इस भाग में, ''वित्त आयोग'' से अनुच्छेद 280 के अधीन गठित वित्त आयोग अभिप्रेत है। 265. विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना--कोई कर विधि के प्राधिकार से ही अधिरोपित या संगृहीत किया जाएगा, अन्यथा नहीं। 266. भारत और राज्यों की संचित निधियाँ और लोक लेखे--(1) अनुच्छेद 267 के उपबंधों के तथा कुछ करों और शुल्कों के शुद्ध आगम पूर्णतः या भागतः राज्यों को सौंप दिए जाने के संबंध में इस अध्याय के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारत सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुंडियाँ निर्गमित करके, उधार द्वारा या अर्थोपाय अग्रिमों द्वारा लिए गए सभी उधार और उधारों के प्रतिसंदाय में उस सरकार को प्राप्त सभी धनराशियों की एक संचित निधि बनेगी जो ''भारत की संचित निधि'' के नाम से ज्ञात होगी तथा किसी राज्य सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुंडियाँ निर्गमित करके, उधार द्वारा या अर्थोपाय अग्रिमों द्वारा लिए गए सभी उधार और उधारों के प्रतिसंदाय में उस सरकार को प्राप्त सभी धनराशियों की एक संचित निधि बनेगी जो ''राज्य की संचित निधि'' के नाम से ज्ञात होगी। (2) भारत सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त सभी अन्य लोक धनराशियाँ, यथास्थिति, भारत के लोक लेखे में या राज्य के लोक लेखे में जमा की जाएँगी। (3) भारत की संचित निधि या राज्य की संचित निधि में से कोई धनराशियाँ विधि के अनुसार तथा इस संविधान में उपबंधित प्रयोजनों के लिए और रीति से ही विनियोजित की जाएँगी, अन्यथा नहीं। 267. आकस्मिकता निधि--(1) संसद, विधि द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप की एक आकस्मिकता निधि की स्थापना कर सकेगी जो ''भारत की आकस्मिकता निधि'' के नाम से ज्ञात होगी जिसमें ऐसी विधि द्वारा अवधारित राशियाँ समय-समय पर जमा की जाएँगी और अनवेक्षित व्यय का अनुच्छेद 115 या अनुच्छेद 116 के अधीन संसद द्वारा, विधि द्वारा, प्राधिकृत किया जाना लंबित रहने तक ऐसी निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए अग्रिम धन देने के लिए राष्ट्रपति को समर्थ बनाने के लिए उक्त निधि राष्ट्रपति के व्ययनाधीन रखी जाएगी। (2) राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप की एक आकस्मिकता निधि की स्थापना कर सकेगा जो ''राज्य की आकस्मिकता निधि'' के नाम से ज्ञात होगी जिसमें ऐसी विधि द्वारा अवधारित राशियाँ समय-समय पर जमा की जाएँगी और अनवेक्षित व्यय का अनुच्छेद 205 या अनुच्छेद 206 के अधीन राज्य के विधान-मंडल द्वारा, विधि द्वारा, प्राधिकृत किया जाना लंबित रहने तक ऐसी निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए अग्रिम धन देने के लिए राज्यपाल को समर्थ बनाने के लिए उक्त निधि राज्य के राज्यपाल2*** के व्ययनाधीन रखी जाएगी। संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण 268. संघ द्वारा उद्गृहीत किए जाने वाले किंतु राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किए जाने वाले शुल्क--(1) ऐसे स्टांप-शुल्क तथा औषधीय और प्रसाधन निर्मितियों पर ऐसे उत्पाद-शुल्क, जो संघ सूची में वर्णित हैं, भारत सरकार द्वारा उद्‍ग्रहीत किए जाएँगे, किंतु -- (क) उस दशा में, जिसमें ऐसे शुल्क 3[संघ राज्यक्षेत्र के भीतर उद्ग्रहणीय हैं भारत सरकार द्वारा, और 1 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अनुच्छेद 264 के स्थान पर प्रतिस्थापित। 2 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख'' शब्दों का लोप किया गया। 3 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''पहली अनुसूची के भाग ग में विनिर्दिष्ट राज्य'' के स्थान पर प्रतिस्थापित। (ख) अन्य दशाओं में जिन-जिन राज्यों के भीतर ऐसे शुल्क उद्ग्रहणीय हैं, उन-उन राज्यों द्वारा, संगृहीत किए जाएँगे। (2) किसी राज्य के भीतर उद्ग्रहणीय किसी ऐसे शुल्क के किसी वित्तीय वर्ष में आगम, भारत की संचित निधि के भाग नहीं होंगे, किन्तु उस राज्य को सौंप दिए जाएँगे। 1[268क. संघ द्वारा उद्‌गृहीत किए जाने वाला और संघ तथा राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किया जाने वाला सेवा-कर--(1) सेवाओं पर कर भारत सरकार द्वारा उद्‌गृहीत किए जाएँगे और ऐसा कर खंड (2) में उपबंधित रीति से भारत सरकार तथा राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किया जाएगा। (2) किसी वित्तीय वर्ष में, खंड (1) के उपबंध के अनुसार, उद्‌गृहीत ऐसे किसी कर के आगमों का-- (क) भारत सरकार और राज्यों द्वारा संग्रहण; (ख) भारत सरकार और राज्यों द्वारा विनियोजन, संग्रहण और विनियोजन के ऐसे सिद्धान्तों के अनुसार किया जाएगा, जिन्हें संसद विधि द्वारा बनाए। 269. संघ द्वारा उद्गृहीत और संगृहीत किंतु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर--2[(1) माल के क्रय या विक्रय पर कर और माल के परेषण पर कर, भारत सरकार द्वारा उद्गृहीत और संगृहीत किए जाएँगे किन्तु खंड (2) में उपबंधित रीति से राज्यों को 1 अप्रैल, 1996 को या उसके पश्चात्‌ सौंप दिए जाएँगे या सौंप दिए गए समझे जाएँगे। स्पष्टीकरण --इस खंड के प्रयोजनों के लिए-- (क) ''माल के क्रय या विक्रय पर कर'' पद से समाचारपत्रों से भिन्न माल के क्रय या विक्रय पर उस दशा में कर अभिप्रेत है जिसमें ऐसा क्रय या विक्रय अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है ; (ख) ''माल के परेषण पर कर'' पद से माल के परेषण पर (चाहे प्रेषण उसके करने वाले व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को किया गया हो) उस दशा में कर अभिप्रेत है जिसमें ऐसा प्रेषण अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है। (2) किसी वित्तीय वर्ष में किसी ऐसे कर के शुद्ध आगम वहाँ तक के सिवाय, जहाँ तक वे आगम संघ राज्यक्षेत्रों से प्राप्त हुए आगम माने जा सकते हैं, भारत की संचित निधि के भाग नहीं होंगे, किंतु उन राज्यों को सौंप दिए जाएँगे जिनके भीतर वह कर उस वर्ष में उद्ग्रहणीय हैं और वितरण के ऐसे सिद्धांतों के अनुसार, जो संसद विधि द्वारा बनाए, उन राज्यों के बीच वितरित किए जाएँगे। 3[(3) संसद, यह अवधारित करने के लिए कि 4[माल का क्रय या विक्रय या प्रेषण] कब अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है, विधि द्वारा सिद्धांत बना सकेगी। 5[270.उद्‍गृहीत कर और उनका संघ तथा राज्यों के बीच वितरण--(1) क्रमशः 6[अनुच्छेद 268 और अनुच्छेद 269] में निर्दिष्ट शुल्कों और करों के सिवाय, संघ सूची में निर्दिष्ट सभी कर और शुल्क; अनुच्छेद 271 में निर्दिष्ट करों और शुल्कों पर अधिभार और संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए उद्‍गृहीत कोई उपकर भारत सरकार द्वारा उद्‍गृहीत और संगृहीत किए जाएँगे तथा खंड (2) में उपबंधित रीति से संघ और राज्यों के बीच वितरित किए जाएँगे। 1 संविधान (अठासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा (प्रवर्तन की तारीख से) अंतःस्थापित। 2 संविधान (अस्सीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 2 द्वारा खंड (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित। 3 संविधान (छठा संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा अंतःस्थापित। 4 संविधान (छियालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1982 की धारा 2 द्वारा ''माल का क्रय या विक्रय'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। 5 संविधान (अस्सीवाँ संशोधन) की धारा 3 द्वारा (1-4-1996 से) अनुच्छेद 270 के स्थान पर प्रतिस्थापित। 6 संविधान (अठासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 3 के प्रवर्तित होने पर ''अनुच्छेद 268 और अनुच्छेद 269'' शब्दों के स्थान पर ''अनुच्छेद 268, अनुच्छेद 268क और अनुच्छेद 269'' प्रतिस्थापित किए जाएँगे। (2) किसी वित्तीय वर्ष में किसी ऐसे कर या शुल्क के शुद्ध आगमों का ऐसा प्रतिशत, जो विहित किया जाए, भारत की संचित निधि का भाग नहीं होगा, किन्तु उन राज्यों को सौंप दिया जाएगा जिनके भीतर वह कर या शुल्क उस वर्ष में उद्ग्रहणीय है और ऐसी रीति से और ऐसे समय से, जो खंड (3) में उपबंधित रीति से विहित किया जाए, उन राज्यों के बीच वितरित किया जाएगा। (3) इस अनुच्छेद में, ''विहित'' से अभिप्रेत है-- (i) जब तक वित्त आयोग का गठन नहीं किया जाता है तब तक राष्ट्रपति द्वारा आदेश द्वारा विहित; और (ii) वित्त आयोग का गठन किए जाने के पश्चात्‌ वित्त आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के पश्चात्‌ राष्ट्रपति द्वारा आदेश द्वारा विहित। 271. कुछ शुल्कों और करों पर संघ के प्रयोजनों के लिए अधिभार--अनुच्छेद 269 और अनुच्छेद 270 में किसी बात के होते हुए भी, संसद उन अनुच्छेदों में निर्दिष्ट शुल्कों या करों में से किसी में किसी भी समय संघ के प्रयोजनों के लिए अधिभार द्वारा वृद्धि कर सकेगी और किसी ऐसे अधिभार के संपूर्ण आगम भारत की संचित निधि के भाग होंगे। 1272. [कर जो संघ द्वारा उद्‍गृहीत और संगृहीत किए जाते हैं तथा जो संघ और राज्यों के बीच वितरित किए जा सकेंगे -- संविधान (अस्सीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 4 द्वारा लोप किया गया। 273. जूट पर और जूट उत्पादों पर निर्यात शुल्क के स्थान पर अनुदान--(1) जूट पर और जूट उत्पादों पर निर्यात शुल्क के प्रत्येक वर्ष के शुद्ध आगम का कोई भाग असम, बिहार, उड़ीसा और पश्चिमी बंगाल राज्यों को सौंप दिए जाने के स्थान पर उन राज्यों के राजस्व में सहायता अनुदान के रूप में प्रत्येक वर्ष भारत की संचित निधि पर ऐसी राशियाँ भारित की जाएँगी जो विहित की जाएँ। (2) जूट पर और जूट उत्पादों पर जब तक भारत सरकार कोई निर्यात शुल्क उद्‍गृहीत करती रहती है तब तक या इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष की समाप्ति तक, इन दोनों में से जो भी पहले हो, इस प्रकार विहित राशियाँ भारत की संचित निधि पर भारित बनी रहेंगी। (3) इस अनुच्छेद में, ''विहित'' पद का वही अर्थ है जो अनुच्छेद 270 में है। 274. ऐसे कराधान पर जिसमें राज्य हितबद्ध है, प्रभाव डालने वाले विधेयकों के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सिफारिश की अपेक्षा--(1) कोई विधेयक या संशोधन, जो ऐसा कर या शुल्क, जिसमें राज्य हितबद्ध है, अधिरोपित करता है या उसमें परिवर्तन करता है अथवा जो भारतीय आय-कर से संबंधित अधिनियमितियों के प्रयोजनों के लिए परिभाषित ''कृषि-आय'' पद के अर्थ में परिवर्तन करता है अथवा जो उन सिद्धांतों को प्रभावित करता है जिनसे इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी उपबंध के अधीन राज्यों को धनराशियाँ वितरणीय हैं या हो सकेंगी अथवा जो संघ के प्रयोजनों के लिए कोई ऐसा अधिभार अधिरोपित करता है जो इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में वर्णित है, संसद के किसी सदन में राष्ट्रपति की सिफारिश पर ही पुरःस्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा, अन्यथा नहीं। (2) इस अनुच्छेद में, ''ऐसा कर या शुल्क, जिसमें राज्य हितबद्ध हैं'' पद से ऐसा कोई कर या शुल्क अभिप्रेत है-- (क) जिसके शुद्ध आगम पूर्णतः या भागतः किसी राज्य को सौंप दिए जाते हैं, या (ख) जिसके शुद्ध आगम के प्रति निर्देश से भारत की संचित निधि में से किसी राज्य को राशियाँ तत्समय संदेय हैं। 1 संविधान (अस्सीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 4 द्वारा अनुच्छेद 272 का लोप किया गया। 275. कुछ राज्यों को संघ से अनुदान--(1) ऐसी राशियाँ, जिनका संसद विधि द्वारा उपबंध करे, उन राज्यों के राजस्वों में सहायता अनुदान के रूप में प्रत्येक वर्ष भारत की संचित निधि पर भारित होंगी जिन राज्यों के विषय में संसद यह अवधारित करे कि उन्हें सहायता की आवश्यकता है और भिन्न-भिन्न राज्यों के लिए भिन्न-भिन्न राशियाँ नियत की जा सकेंगी: परंतु किसी राज्य के राजस्वों में सहायता अनुदान के रूप में भारत की संचित निधि में से ऐसी पूंजी और आवर्ती राशियाँ संदत्त की जाएँगी जो उस राज्य को उन विकास स्कीमों के खर्चों को पूरा करने में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हों जिन्हें उस राज्य में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण की अभिवृद्धि करने या उस राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन स्तर को उस राज्य के शेष क्षेत्रों के प्रशासन स्तर तक उन्नत करने के प्रयोजन के लिए उस राज्य द्वारा भारत सरकार के अनुमोदन से हाथ में लिया जाए : परंतु यह और कि असम राज्य के राजस्व में सहायता अनुदान के रूप में भारत की संचित निधि में से ऐसी पूँजी और आवर्ती राशियाँ संदत्त की जाएँगी – (क) जो छठी अनुसूची के पैरा 20 से संलग्न सारणी के 1[भाग1] में विनिर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पूर्ववर्ती दो वर्ष के दौरान औसत व्यय राजस्व से जितना अधिक है, उसके बराबर हैं; और (ख) जो उन विकास स्कीमों के खर्चों के बराबर हैं जिन्हें उक्त क्षेत्रों के प्रशासन स्तर को उस राज्य के शेष क्षेत्रों के प्रशासन स्तर तक उन्नत करने के प्रयोजन के लिए उस राज्य द्वारा भारत सरकार के अनुमोदन से हाथ में लिया जाए। 2[(1क) अनुच्छेद 244क के अधीन स्वशासी राज्य के बनाए जाने की तारीख को और से – (i) खंड (1) के दूसरे परंतुक के खंड (क) के अधीन संदेय कोई राशियाँ स्वशासी राज्य को उस दशा में संदत्त की जाएँगी जब उसमें निर्दिष्ट सभी जनजाति क्षेत्र उस स्वशासी राज्य में समाविष्ट हों और यदि स्वशासी राज्य में उन जनजाति क्षेत्रों में से केवल कुछ ही समाविष्ट हों तो वे राशियाँ असम राज्य और स्वशासी राज्य के बीच ऐसे प्रभाजित की जाएँगी जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे; (ii) स्वशासी राज्य के राजस्वों में सहायता अनुदान के रूप में भारत की संचित निधि में से ऐसी पूँजी और आवर्ती राशियाँ संदत्त की जाएँगी जो उन विकास स्कीमों के खर्चों के बराबर है जिन्हें स्वशासी राज्य के प्रशासन स्तर को शेष असम राज्य के प्रशासन स्तर तक उन्नत करने के प्रयोजन के लिए स्वशासी राज्य द्वारा भारत सरकार के अनुमोदन से हाथ में लिया जाए। (2) जब तक संसद खंड (1) के अधीन उपबंध नहीं करती है तब तक उस खंड के अधीन संसद को प्रदत्त शक्तियाँ राष्ट्रपति द्वारा, आदेश द्वारा, प्रयोक्तव्य होंगी और राष्ट्रपति द्वारा इस खंड के अधीन किया गया कोई आदेश संसद द्वारा इस प्रकार किए गए किसी उपबंध के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा: परंतु वित्त आयोग का गठन किए जाने के पश्चात्‌ राष्ट्रपति द्वारा इस खंड के अधीन कोई आदेश वित्त आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के पश्चात्‌ ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं। 276. वृत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं और नियोजनों पर कर--(1) अनुच्छेद 246 में किसी बात के होते हुए भी, किसी राज्य के विधान-मंडल की ऐसे करों से संबंधित कोई विधि, जो उस राज्य के या उसमें किसी नगरपालिका, जिला बोर्ड, स्थानीय बोर्ड या अन्य स्थानीय प्राधिकारी के फायदे के लिए वृत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं या नियोजनों के संबंध में है, इस आधार पर अधिमान्य नहीं होगी कि वह आय पर कर से संबंधित है। 1 पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम, 1971 (1971 का 81) की धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) ''भाग क'' के स्थान पर प्रतिस्थापित। 2 संविधान (बाईसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1969 की धारा 3 द्वारा अंतःस्थापित। (2) राज्य को या उस राज्य में किसी एक नगरपालिका, जिला बोर्ड, स्थानीय बोर्ड या अन्य स्थानीय प्राधिकारी को किसी एक व्यक्ति के बारे में वृत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं और नियोजनों पर करों के रूप में संदेय कुल रकम 1[दो हजार पाँच सौ रुपए] प्रति वर्ष से अधिक नहीं होगी। (3) वृत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं और नियोजनों पर करों के संबंध में पूर्वोक्त रूप में विधियाँ बनाने की राज्य के विधान-मंडल की शक्ति का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह वृत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं और नियोजनों से प्रोद्‌भूत या उद्‌भूत आय पर करों के संबंध में विधियाँ बनाने की संसद की शक्ति को किसी प्रकार सीमित करती है। 277. व्यावृत्ति--ऐसे कर, शुल्क, उपकर या फीसें, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले किसी राज्य की सरकार द्वारा अथवा किसी नगरपालिका या अन्य स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा उस राज्य, नगरपालिका, जिला या अन्य स्थानीय क्षेत्र के प्रयोजनों के लिए विधिपूर्वक उद्‍गृहीत की जा रही थी, इस बात के होते हुए भी कि वे कर, शुल्क, उपकर या फीसें संघ सूची में वर्णित हैं, तब तक उद्‍गृहीत की जाती रहेंगी और उन्हीं प्रयोजनों के लिए उपयोजित की जाती रहेंगी जब तक संसद विधि द्वारा इसके प्रतिकूल उपबंध नहीं करती है। 278. [कुछ वित्तीय विषय के संबंध में पहली अनुसूची के भाग ख के राज्यों से करार।] संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा निरसित। 279. ''शुद्ध आगम'' आदि की गणना--(1) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में ''शुद्ध आगम'' से किसी कर या शुल्क के संबंध में उसका वह आगम अभिप्रेत है जो उसके संग्रहण के खर्चों को घटाकर आए और उन उपबंधों के प्रयोजनों के लिए किसी क्षेत्र में या उससे प्राप्त हुए माने जा सकने वाले किसी कर या शुल्क का अथवा किसी कर या शुल्क के किसी भाग का शुद्ध आगम भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा ‍अभिनिश्चित और प्रमाणित किया जाएगा और उसका प्रमाणपत्र अंतिम होगा। (2) जैसा ऊपर कहा गया है उसके और इस अध्याय के किसी अन्य अभिव्यक्त उपबंध के अधीन रहते हुए, किसी ऐसी दशा में, जिसमें इस भाग के अधीन किसी शुल्क या कर का आगम किसी राज्य को सौंप दिया जाता है या सौंप दिया जाए, संसद द्वारा बनाई गई विधि या राष्ट्रपति का कोई आदेश उस रीति का, जिससे आगम की गणना की जानी है, उस समय का, जिससे या जिसमें और उस रीति का, जिससे कोई संदाय किए जाने हैं, एक वित्तीय वर्ष और दूसरे वित्तीय वर्ष में समायोजन करने का और अन्य आनुषंगिक या सहायक विषयों का उपबंध कर सकेगा। 280. वित्त आयोग--(1) राष्ट्रपति, इस संविधान के प्रारंभ से दो वर्ष के भीतर और तत्पश्चात्‌ प्रत्येक पाँच वें वर्ष की समाप्ति पर या ऐसे पूर्वतर समय पर, जिसे राष्ट्रपति आवश्यक समझता है, आदेश द्वारा, वित्त आयोग का गठन करेगा जो राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाने वाले एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा। (2) संसद विधि द्वारा, उन अर्हताओं का, जो आयोग के सदस्यों के रूप में नियुक्ति के लिए अपेक्षित होंगी और उस रीति का, जिससे उनका चयन किया जाएगा, अवधारण कर सकेगी। (3) आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह-- (क) संघ और राज्यों के बीच करों के शुद्ध आगमों के, जो इस अध्याय के अधीन उनमें विभाजित किए जाने हैं या किए जाएँ, वितरण के बारे में और राज्यों के बीच ऐसे आगमों के तत्संबंधी भाग के आबंटन के बारे में; (ख) भारत की संचित निधि में से राज्यों के राजस्व में सहायता अनुदान को शासित करने वाले सिद्धांतों के बारे में; 1 संविधान (साठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1988 की धारा 2 द्वारा ''दो सौ पचास रुपए'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। 2 संविधान (साठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1988 की धारा 2 द्वारा परन्तुक का लोप किया गया। 285. संघ की संपत्ति को राज्य के कराधान से छूट--(1) वहाँ तक के सिवाय, जहाँ तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध करे, किसी राज्य द्वारा या राज्य के भीतर किसी प्राधिकारी द्वारा अधिरोपित सभी करों से संघ की संपत्ति को छूट होगी। (2) जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक खंड (1) की कोई बात किसी राज्य के भीतर किसी प्राधिकारी को संघ की किसी संपत्ति पर कोई ऐसा कर, जिसका दायित्व इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले, ऐसी संपत्ति पर था या माना जाता था, उद्‍गृहीत करने से तब तक नहीं रोकेगी जब तक वह कर उस राज्य में उद्‍गृहीत होता रहता है। 286. माल के क्रय या विक्रय पर कर के अधिरोपण के बारे में निर्बंधन -- (1) राज्य की कोई विधि, माल के क्रय या विक्रय पर, जहाँ ऐसा क्रय या विक्रय-- (क) राज्य के बाहर, या (ख) भारत के राज्यक्षेत्र में माल के आयात या उसके बाहर निर्यात के दौरान, होता है वहाँ, कोई कर अधिरोपित नहीं करेगी या अधिरोपित करना प्राधिकृत नहीं करेगी। 1*** 2[(2) संसद, यह अवधारित करने के लिए कि माल का क्रय या विक्रय खंड (1) में वर्णित रीतियों में से किसी रीति से कब होता है विधि द्वारा, सिद्धांत बना सकेगी। 3[(3) जहाँ तक किसी राज्य की कोई विधि-- (क) ऐसे माल के, जो संसद द्वारा विधि द्वारा अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य में विशेष महत्व का माल घोषित किया गया है, क्रय या विक्रय पर कोई कर अधिरोपित करती है या कर का अधिरोपण प्राधिकृत करती है; या (ख) माल के क्रय या विक्रय पर ऐसा कर अधिरोपित करती है या ऐसे कर का अधिरोपण प्राधिकृत करती है, जो अनुच्छेद 366 के खंड (29क) के उपखंड (ख), उपखंड (ग) या उपखंड (घ) में निर्दिष्ट प्रकृति का कर है, वहाँ तक वह विधि, उस कर के उद्ग्रहण की पद्धति, दरों और अन्य प्रसंगतियों के संबंध में ऐसे निबंधनों और शर्तों के अधीन होगी जो संसद विधि द्वारा विनिर्दिष्ट करे। 287. विद्युत पर करों से छूट--वहाँ तक के सिवाय, जहाँ तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध करे, किसी राज्य की कोई विधि (किसी सरकार द्वारा या अन्य व्यक्तियों द्वारा उत्पादित) विद्युत के उपभोग या विक्रय पर जिसका -- (क) भारत सरकार द्वारा उपभोग किया जाता है या भारत सरकार द्वारा उपभोग किए जाने के लिए उस सरकार को विक्रय किया जाता है, या (ख) किसी रेल के निर्माण, बनाए रखने या चलाने में भारत सरकार या किसी रेल कंपनी द्वारा, जो उस रेल को चलाती है, उपभोग किया जाता है अथवा किसी रेल के निर्माण, बनाए रखने या चलाने में उपभोग के लिए उस सरकार या किसी ऐसी रेल कंपनी को विक्रय किया जाता है, 1 संविधान (छठा संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 4 द्वारा खंड (1) के स्पष्टीकरण का लोप किया गया। 2 संविधान (छठा संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 4 द्वारा खंड (2) और खंड (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित। 3 संविधान (छियालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1982 की धारा 3 द्वारा खंड (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित। कोई कर अधिरोपित नहीं करेगी या कर का अधिरोपण प्राधिकृत नहीं करेगी और विद्युत के विक्रय पर कोई कर अधिरोपित करने या कर का अधिरोपण प्राधिकृत करने वाली कोई ऐसी विधि यह सुनिश्चित करेगी कि भारत सरकार द्वारा उपभोग किए जाने के लिए उस सरकार को, या किसी रेल के निर्माण, बनाए रखने या चलाने में उपभोग के लिए यथापूर्वोक्त किसी रेल कंपनी को विक्रय की गई विद्युत की कीमत, उस कीमत से जो विद्युत का प्रचुर मात्रा में उपभोग करने वाले अन्य उपभोक्ताओं से ली जाती है, उतनी कम होगी जितनी कर की रकम है। 288. जल या विद्युत के संबंध में राज्यों द्वारा कराधान से कुछ दशाओं में छूट--(1) वहाँ तक के सिवाय जहाँ तक राष्ट्रपति आदेश द्वारा अन्यथा उपबंध करे, इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले किसी राज्य की कोई प्रवृत्त विधि किसी जल या विद्युत के संबंध में, जो किसी अंतरराज्यिक नदी या नदी-दून के विनियमन या विकास के लिए किसी विद्यमान विधि द्वारा या संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा स्थापित किसी प्राधिकारी द्वारा संचित, उत्पादित, उपभुक्त, वितरित या विक्रीत की जाती है, कोई कर अधिरोपित नहीं करेगी या कर का अधिरोपण प्राधिकृत नहीं करेगी। स्पष्टीकरण --इस खंड में, ''किसी राज्य की कोई प्रवृत्त विधि'' पद के अंतर्गत किसी राज्य की ऐसी विधि होगी जो इस संविधान के प्रारंभ से पहले पारित या बनाई गई है और जो पहले ही निरसित नहीं कर दी गई है, चाहे वह या उसके कोई भाग उस समय बिल्कुल या विशिष्ट क्षेत्रों में प्रवर्तन में न हों। (2) किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, खंड (1) में वर्णित कोई कर अधिरोपित कर सकेगा या ऐसे कर का अधिरोपण प्राधिकृत कर सकेगा, किन्तु ऐसी किसी विधि का तब तक कोई प्रभाव नहीं होगा जब तक उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखे जाने के पश्चात्‌ उसकी अनुमति न मिल गई हो और यदि ऐसी कोई विधि ऐसे करों की दरों और अन्य प्रसंगतियों को किसी प्राधिकारी द्वारा, उस विधि के अधीन बनाए जाने वाले नियमों या आदेशों द्वारा, नियत किए जाने का उपबंध करती है तो वह विधि ऐसे किसी नियम या आदेश के बनाने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सहमति अभिप्राप्त किए जाने का उपबंध करेगी। 289. राज्यों की संपत्ति और आय को संघ के कराधान से छूट--(1) किसी राज्य की संपत्ति और आय को संघ के करों से छूट होगी। (2) खंड (1) की कोई बात संघ को किसी राज्य की सरकार द्वारा या उसकी ओर से किए जाने वाले किसी प्रकार के व्यापार या कारबार के संबंध में अथवा उससे संबंधित किन्हीं क्रियाओं के संबंध में अथवा ऐसे व्यापार या कारबार के प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त या ओंधभुक्त किसी संपत्ति के संबंध में अथवा उसके संबंध में प्रोद्‌भूत या उद्‌भूत किसी आय के बारे में, किसी कर को ऐसी मात्रा तक, यदि कोई हो, जिसका संसद विधि द्वारा उपबंध करे, अधिरोपित करने या कर का अधिरोपण प्राधिकृत करने से नहीं रोकेगी। (3) खंड (2) की कोई बात किसी ऐसे व्यापार या कारबार अथवा व्यापार या कारबार के किसी ऐसे वर्ग को लागू नहीं होगी जिसके बारे में संसद विधि द्वारा घोषणा करे कि वह सरकार के मामूली कृत्यों का आनुषंगिक है। 290. कुछ व्ययों और पेंशनों के संबंध में समायोजन--जहाँ इस संविधान के उपबंधों के अधीन किसी न्यायालय या आयोग के व्यय अथवा किसी व्यक्ति को या उसके संबंध में, जिसने इस संविधान के प्रारंभ से पहले भारत में क्राउन के अधीन अथवा ऐसे प्रारंभ के पश्चात्‌ संघ के या किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा की है, संदेय पेंशन भारत की संचित निधि या किसी राज्य की संचित निधि पर भारित है वहाँ, यदि -- (क) भारत की संचित निधि पर भारित होने की दशा में, वह न्यायालय या आयोग किसी राज्य की पृथक्‌ आवश्यकताओं में से किसी की पूर्ति करता है या उस व्यक्ति ने किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में पूर्णतः या भागतः सेवा की है, या (ख) किसी राज्य की संचित निधि पर भारित होने की दशा में, वह न्यायालय या आयोग संघ की या अन्य राज्य की पृथक्‌ आवश्यकताओं में से किसी की पूर्ति करता है या उस व्यक्ति ने संघ या अन्य राज्य के कार्यकलाप के संबंध में पूर्णतः या भागतः सेवा की है, तो, यथास्थिति, उस राज्य की संचित निधि पर अथवा, भारत की संचित निधि अथवा अन्य राज्य की संचित निधि पर, व्यय या पेंशन के संबंध में उतना अंशदान, जितना करार पाया जाए या करार के अभाव में, जितना भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ अवधारित करे, भारित किया जाएगा और उसका उस निधि में से संदाय किया जाएगा। 1[290क. कुछ देवस्वम्‌ निधियों को वार्षिक संदाय--प्रत्येक वर्ष छियालीस लाख पचास हजार रुपए की राशि केरल राज्य की संचित निधि पर भारित की जाएगी और उस निधि में से तिरूवाँकुर देवस्वम्‌ निधि को संदत्त की जाएगी और प्रत्येक वर्ष तेरह लाख पचास हजार रुपए की राशि 2[तमिलनाडु] राज्य की संचित निधि पर भारित की जाएगी और उस निधि में से 1 नवंबर, 1956 को उस राज्य को तिरुवाँकुर-कोचीन राज्य से अंतरित राज्यक्षेत्रों के हिंदू मंदिरों और पवित्र स्थानों के अनुरक्षण के लिए उस राज्य में स्थापित देवस्वम्‌ निधि को संदत्त की जाएगी। 291. [शासकों की निजी थैली की राशि।]--संविधान (छब्बीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 2 निरसित। 1 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 19 द्वारा अंतःस्थापित। 2 मद्रास राज्य (नाम परिवर्तन) अधिनियम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) मद्रास के स्थान पर प्रतिस्थापित। भाग 12: वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद: अध्याय 2- उधार लेना 292. भारत सरकार द्वारा उधार लेना--संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, भारत की संचित निधि की प्रतिभूति पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें संसद समय-समय पर विधि द्वारा नियत करे, उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें इस प्रकार नियत किया जाए, प्रत्याभूति देने तक है। 293. राज्यों द्वारा उधार लेना--(1) इस अनुच्छेद के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उस राज्य की संचित निधि की प्रतिभूति पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें ऐसे राज्य का विधान-मंडल समय-समय पर विधि द्वारा नियत करे, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें इस प्रकार नियत किया जाए, प्रत्याभूति देने तक है। (2) भारत सरकार, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन अधिकथित की जाएँ, किसी राज्य को उधार दे सकेगी या जहाँ तक अनुच्छेद 292 के अधीन नियत किन्हीं सीमाओं का उल्लंघन नहीं होता है वहाँ तक किसी ऐसे राज्य द्वारा लिए गए उधारों के संबंध में प्रत्याभूति दे सकेगी और ऐसे उधार देने के प्रयोजन के लिए अपेक्षित राशियाँ भारत की संचित निधि पर भारित की जाएँगी। (3) यदि किसी ऐसे उधार का, जो भारत सरकार ने या उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने उस राज्य को दिया था अथवा जिसके संबंध में भारत सरकार ने या उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने प्रत्याभूति दी थी, कोई भाग अभी भी बकाया है तो वह राज्य, भारत सरकार की सहमति के बिना कोई उधार नहीं ले सकेगा। (4) खंड (3) के अधीन सहमति उन शर्तों के अधीन, यदि कोई हो, दी जा सकेगी जिन्हें भारत सरकार अधिरोपित करना ठीक समझे। भाग 12: वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद: अध्याय 3- संपत्ति, संविदाएँ, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएँ और वाद 294. कुछ दशाओं में संपत्ति, आस्तियों, अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकार—इस संविधान के प्रारंभ से ही-- (क) जो संपत्ति और आस्तियाँ ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन की सरकार के प्रयोजनों के लिए हिज मजेस्टी में निहित थीं और जो संपत्ति और आस्तियाँ ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रत्येक राज्यपाल वाले प्रांत की सरकार के प्रयोजनों के लिए हिज मजेस्टी में निहित थीं, वे सभी इस संविधान के प्रारंभ से पहले पाकिस्तान डोमिनियन के या पश्चिमी बंगाल, पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब प्रांतों के सृजन के कारण किए गए या किए जाने वाले किसी समायोजन के अधीन रहते हुए क्रमशः संघ और तत्स्थानी राज्य में निहित होंगी; और 1 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 19 द्वारा अंतःस्थापित। 2 मद्रास राज्य (नाम परिवर्तन) अधिनियम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) मद्रास के स्थान पर प्रतिस्थापित। (ख) जो अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ भारत डोमिनियन की सरकार की और प्रत्येक राज्यपाल वाले प्रांत की सरकार की थीं, चाहे वे किसी संविदा से या अन्यथा उद्भूत हुई हों, वे सभी इस संविधान के प्रारंभ से पहले पाकिस्तान डोमिनियन के या पश्चिमी बंगाल, पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब प्रांतों के सृजन के कारण किए गए या किए जाने वाले किसी समायोजन के अधीन रहते हुए क्रमशः भारत सरकार और प्रत्येक तत्स्थानी राज्य की सरकार के अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ होंगी। 295. अन्य दशाओं में संपत्ति, आस्तियों, अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकार--(1) इस संविधान के प्रारंभ से ही -- (क) जो संपत्ति और आस्तियाँ ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट राज्य के तत्स्थानी किसी देशी राज्य में निहित थीं, वे सभी ऐसे करार के अधीन रहते हुए, जो भारत सरकार इस निमित्त उस राज्य की सरकार से करे, संघ में निहित होंगी यदि वे प्रयोजन जिनके लिए ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले ऐसी संपत्ति और आस्तियाँ धारित थीं, तत्पश्चात्‌ संघ सूची में प्रगणित किसी विषय से संबंधित संघ के प्रयोजन हों, और (ख) जो अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट राज्य के तत्स्थानी किसी देशी राज्य की सरकार की थीं, चाहे वे किसी संविदा से या अन्यथा उद्‍भूत हुई हों, वे सभी ऐसे करार के अधीन रहते हुए, जो भारत सरकार इस निमित्त उस राज्य की सरकार से करे, भारत सरकार के अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ होंगी यदि वे प्रयोजन, जिनके लिए ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले ऐसे अधिकार अर्जित किए गए थे अथवा ऐसे दायित्व या बाध्यताएँ उपगत की गई थीं, तत्पश्चात्‌ संघ सूची में प्रगणित किसी विषय से संबंधित भारत सरकार के प्रयोजन हों। (2) जैसा।पर कहा गया है उसके अधीन रहते हुए, पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट प्रत्येक राज्य की सरकार, उन सभी संपत्ति और आस्तियों तथा उन सभी अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं के संबंध में, चाहे वे किसी संविदा से या अन्यथा उद्‌भूत हुई हों, जो खंड (1) में निर्दिष्ट से भिन्न हैं, इस संविधान के प्रारंभ से ही तत्स्थानी देशी राज्य की सरकार की उत्तराधिकारी होगी। 296. राजगामी या व्यपगत या स्वामीविहीन होने से प्रोद्‌भूत संपत्ति--इसमें इसके पश्चात्‌ यथा उपबंधित के अधीन रहते हुए, भारत के राज्यक्षेत्रों में कोई संपत्ति जो यदि यह संविधान प्रवर्तन में नहीं आया होता तो राजगामी या व्यपगत होने से या अधिकारवान्‌ स्वामी के अभाव में स्वामीविहीन होने से, यथास्थिति, हिज मजेस्टी को या किसी देशी राज्य के शासक को प्रोद्‌भूत हुई होती, यदि वह संपत्ति किसी राज्य में स्थित है तो ऐसे राज्य में और किसी अन्य दशा में संघ में निहित होगी : परंतु कोई संपत्ति, जो उस तारीख को जब वह इस प्रकार हिज मजेस्टी को या देशी राज्य के शासक को प्रोद्‌भूत हुई होती, भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के कब्जे या नियंत्रण में थी तब, यदि वे प्रयोजन, जिनके लिए वह उस समय प्रयुक्त या धारित थीं, संघ के थे तो वह संघ में या किसी राज्य के थे तो वह उस राज्य में निहित होगी। स्पष्टीकरण --इस अनुच्छेद में, ''शासक'' और ''देशी राज्य'' पदों के वही अर्थ हैं जो अनुच्छेद 363 में हैं। 1[297. राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मषनतट भूमि में स्थित मूल्यवान चीजों और अनन्य आर्थिक क्षेत्र के संपत्ति स्रोतों का संघ में निहित होना-- (1) भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मषनतट भूमि या अनन्य आर्थिक क्षेत्र में समुद्र के नीचे की सभी भूमि, खनिज और अन्य मूल्यवान चीजें संघ में निहित होंगी और संघ के प्रयोजनों के लिए धारण की जाएँगी। (2) भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र के अन्य सभी संपत्ति स्रोत भी संघ में निहित होंगे और संघ के प्रयोजनों के लिए धारण किए जाएँगे। 1 संविधान (चालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 2 द्वारा (27-5-1976 से) अनुच्छेद 297 के स्थान पर प्रतिस्थापित। (3) भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड, महाद्वीपीय मषनतट भूमि, अनन्य आर्थिक क्षेत्र और अन्य सामुद्रिक क्षेत्रों की सीमाएँ वे होंगी जो संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर विनिर्दिष्ट की जाएँ। 1[298. व्यापार करने आदि की शक्ति -- संघ की और प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, व्यापार या कारबार करने और किसी प्रयोजन के लिए संपत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन तथा संविदा करने पर, भी होगा: परंतु -- (क) जहाँ तक ऐसा व्यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नहीं है जिसके संबंध में संसद विधि बना सकती है वहाँ तक संघ की उक्त कार्यपालिका शक्ति प्रत्येक राज्य में उस राज्य के विधान के अधीन होगी ; और (ख) जहाँ तक ऐसा व्यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नहीं है जिसके संबंध में राज्य का विधान-मंडल विधि बना सकता है वहाँ तक प्रत्येक राज्य की उक्त कार्यपालिका शक्ति संसद के विधान के अधीन होगी। 299. संविदाएँ-- (1) संघ की या राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग करते हुए की गई सभी संविदाएँ, यथास्थिति, राष्ट्रपति द्वारा या उस राज्य के राज्यपाल 2*** द्वारा की गई कही जाएँगी और वे सभी संविदाएँ और संपत्ति संबंधी हस्तांतरण-पत्र, जो उस शक्ति का प्रयोग करते हुए किए जाएँ, राष्ट्रपति या राज्यपाल 2***की ओर से ऐसे व्यक्तियों द्वारा और रीति से नि-पादित किए जाएँगे जिसे वह निर्दिष्ट या प्राधिकृत करे। (2) राष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल 2*** इस संविधान के प्रयोजनों के लिए या भारत सरकार के संबंध में इससे पूर्व प्रवृत्त किसी अधिनियमिति के प्रयोजनों के लिए की गई या नि-पादित की गई किसी संविदा या हस्तांतरण-पत्र के संबंध में वैयक्तिक रूप से दायी नहीं होगा या उनमें से किसी की ओर से ऐसी संविदा या हस्तांतरण-पत्र करने या नि-पादित करने वाला व्यक्ति उसके संबंध में वैयक्तिक रूप से दायी नहीं होगा। 300. वाद और कार्यवाहियाँ--(1) भारत सरकार भारत संघ के नाम से वाद ला सकेगी या उस पर वाद लाया जा सकेगा और किसी राज्य की सरकार उस राज्य के नाम से वाद ला सकेगी या उस पर वाद लाया जा सकेगा और ऐसे उपबंधों के अधीन रहते हुए, जो इस संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के आधार पर अधिनियमित संसद के या ऐसे राज्य के विधान-मंडल के अधिनियम द्वारा किए जाएँ, वे अपने-अपने कार्यकलाप के संबंध में उसी प्रकार वाद ला सकेंगे या उन पर उसी प्रकार वाद लाया जा सकेगा जिस प्रकार, यदि यह संविधान अधिनियमित नहीं किया गया होता तो, भारत डोमिनियन और तत्स्थानी प्रांत या तत्स्थानी देशी राज्य वाद ला सकते थे या उन पर वाद लाया जा सकता था। (2) यदि इस संविधान के प्रारंभ पर-- (क) कोई ऐसी विधिक कार्यवाहियाँ लंबित हैं जिनमें भारत डोमिनियन एक पक्षकार है तो उन कार्यवाहियों में उस डोमिनियन के स्थान पर भारत संघ प्रतिस्थापित किया गया समझा जाएगा; और (ख) कोई ऐसी विधिक कार्यवाहियाँ लंबित हैं जिनमें कोई प्रांत या कोई देशी राज्य एक पक्षकार है तो उन कार्यवाहियों में उस प्रांत या देशी राज्य के स्थान पर तत्स्थानी राज्य प्रतिस्थापित किया गया समझा जाएगा। 3[अध्याय 4 -- संपत्ति का अधिकार 300क. विधि के प्राधिकार के बिना व्यक्तियों को संपत्ति से वंचित न किया जाना--किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से विधि के प्राधिकार से ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं। 1 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 20 द्वारा अनुच्छेद 298 के स्थान पर प्रतिस्थापित। 2 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख'' शब्दों का लोप किया गया। 3. संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 34 द्वारा (20-6-1978 से) अंतःस्थापित। भाग 12: वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद: 1[अध्याय 4 -- संपत्ति का अधिकार 300क. विधि के प्राधिकार के बिना व्यक्तियों को संपत्ति से वंचित न किया जाना--किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से विधि के प्राधिकार से ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं। 1 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 34 द्वारा (20-6-1978 से) अंतःस्थापित

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